वर्तमान CM हेमंत सोरेन के आगे पूर्व CM बाबूलाल मरांडी फेल : बीजेपी कर रही है अब किसी बड़े आदिवासी चेहरे की तलाश
झारखंड में भारतीय जनता पार्टी को हेमंत सोरेन से मुकाबले के लिए किसी बड़े आदिवासी चेहरे की तलाश है।
बाबूलाल मरांडी और दीपक प्रकाश पर दांव लगाकर देख चुकी भाजपा ने अब नए आदिवासी चेहरे की तलाश भी शुरू कर दी है। सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार हेमंत सोरेन के आगे लगातार धाराशायी हो रही बाबूलाल मरांडी और दीपक प्रकाश की जोड़ी ने भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है। भाजपा ने 2020 में जिन उम्मीदों के साथ बाबूलाल मरांडी को पार्टी में "इम्पोर्ट" कराया था, उसपर बाबूलाल खरा नहीं उतर पाए हैं।
एक तरफ जहां भाजपा झारखंड में लगातार हर उपचुनाव हार रही है, तो वहीं दूसरी तरफ बाबूलाल मरांडी को हेमंत के मुकाबले में एक मजबूत विकल्प के तौर पर पेश करने की भाजपा की कोशिश भी कामयाब होती दिखाई नहीं दे रही है।
हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री सुनील बंसल के झारखंड दौरे में भी पार्टी की ये बेचैनी साफ देखने को मिली। सूत्रों के हवाले से खबर है कि भाजपा के ही नेता और कार्यकर्ता बाबूलाल मरांडी को नेता के तौर पर आगे कर चुनाव लड़ने के विरोध में दिखाई दे रहे हैं।
भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का कहना है कि बाबूलाल मरांडी को अगर 2024 में पार्टी का चेहरा बनाया गया, तो बीजेपी को कोई ख़ास फायदा नहीं मिलेगा। ऐसे में उन्हें किसी और बड़े चेहरे की तलाश करनी चाहिए। हाल ही में जिस तरह सीएम हेमंत सोरेन ने 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति, ओबीसी आरक्षण, पारा शिक्षकों के नियमितीकरण, सरना धर्म कोड, पुरानी पेंशन स्कीम, नियुक्ति नियमावली समेत कई बड़े और महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं,
उसने भी भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। भाजपा को इस बात का आभास है कि झारखंड में हेमंत सोरेन एक सर्वमान्य नेता के रूप में उभर रहे हैं। नियुक्ति नियमावली के रद्द होने के बाद भाजपा के नेताओं ने इसे भी बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की, लेकिन उसका ये दांव भी उलटा पड़ गया।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन राज्य के आदिवासी-मूलवासियों के बीच ये संदेश ले जाने में कामयाब होते दिख रहे हैं कि साजिश के तहत बाहरियों ने नियुक्ति नियमावली रद्द कराई है, जिससे यहां के आदिवासी-मूलवासियों को नियुक्तियों से वंचित किया जा सके। सीएम लगातार हर मंच से ये बात दोहराते नजर आ रहे हैं कि इस नियमावली से केवल सामान्य वर्ग के लोगों को ही आपत्ति थी।
यही वजह है कि भाजपा इस मुद्दे पर भी ज्यादा खुलकर बयानबाजी नहीं कर पा रही है। बीजेपी ने झारखंड में आदिवासी - मूलवासियों का वोट हासिल करने के लिए 2014 के बाद से लगातार कई प्रयास किए, जिसमें सुदर्शन भगत को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देने से लेकर अर्जुन मुंडा को केंद्रीय मंत्री बनाने तक शामिल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को भी जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया, जिससे आदिवासियों के बीच ये संदेश दिया जा सके कि बीजेपी आदिवासियों की हिमायती है,
मगर इसका भी पार्टी को कोई लाभ नहीं हुआ। 2019 में हेमंत सोरेन के हाथों करारी शिकस्त का सामना कर चुकी भाजपा ने जेएमएम से मुकाबले के लिए एक तरफ जहां बाबूलाल मरांडी को पार्टी में इम्पोर्ट कराकर विधायक दल का नेता बनाया, वहीं भाजपा सांसद समीर उरांव को अनुसूचित जनजाति मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने से लेकर रांची की मेयर आशा लकड़ा को राष्ट्रीय मंत्री बनाने तक, हर दांव खेल कर देख लिया।
मगर इन सब के बावजूद बीजेपी को झारखंड में निराशा ही हाथ लगी है। झारखंड के आदिवासी - मूलवासियों के बीच भाजपा की साख लगातार गिरती जा रही है, वहीं केंद्र के सौतेलेपन समेत ईडी, आईटी और सीबीआई तक की मार झेल रहे हेमंत सोरेन की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। बीजेपी के तमाम प्रयासों के बावजूद हेमंत सोरेन की साख में कोई कमी नहीं आई है। यही वजह है कि भाजपा ने अब हेमंत से टक्कर लेने के लिए पूरी पार्टी का 'रिनोवेशन' करने का निर्णय लिया है। जल्द ही भाजपा के भीतर बड़ा उलटफेर देखने को मिल सकता है।
सूत्रों से मिल रही जानकारी के अनुसार भाजपा में जल्द ही बाबूलाल मरांडी की विधायक दल के नेता के तौर पर और दीपक प्रकाश के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर छुट्टी हो सकती है। बीजेपी बाबूलाल मरांडी को विधायक दल के नेता के पद से हटाकर अध्यक्ष की कुर्सी दे सकती है, वहीं मेयर आशा लकड़ा को भी भाजपा में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।
खबर ये भी है कि भाजपा मेयर आशा लकड़ा को आगामी विधानसभा चुनाव में रांची के खिजरी या गुमला के बिशुनपुर से चुनावी मैदान में उतार सकती है। इतना ही नहीं, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के खासमखास माने जाने वाले नीलकंठ सिंह मुंडा और कोचे मुंडा को भी पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है।
आपको बता दें कि 2019 के चुनाव में आदिवासी-मूलवासियों ने अपना वोट एकतरफा हेमंत सोरेन के पक्ष में दिया था, जिस वजह से आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों में से 26 सीटों पर जेएमएम या उसके सहयोगी दलों की जीत हुई थी।
भाजपा ये समझ रही है कि हेमंत सोरेन से लोहा लेना है तो आदिवासियों को अपने पक्ष में लाना ही होगा। क्योंकि झारखंड में सत्ता पाने के लिए आदिवासियों का वोट सबसे जरुरी है। बहरहाल ये देखना होगा कि भाजपा के भीतर बड़े पैमाने पर उलटफेर करने के बावजूद क्या झारखंड का आदिवासी-मूलवासी समाज, भाजपा को कभी स्वीकार करेगा, या हर बार की तरह भाजपा की आदिवासी-मूलवासी विरोधी छवि उसे 2024 में भी सत्ता तक पहुंचने में सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आएगी।
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