भारत में गांधीवाद, विकासवाद और इमानदारी का प्रतीक के रूप में प्रचलित है 2 अक्टूबर
मानव तन गुण - अवगुण से युक्त है। यह सत्य है कि हमारे आराध्य श्री राम का मार्यादित जीवन था, फिर भी उन्होंने दूसरे के कहने पर गर्भवती सीता माता को वन में भेजा था। उसी प्रकार से महात्मा गांधी का जीवन भी गुण और अवगुण से युक्त रहा है।
मैं मानता हूं कि भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम में गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, परन्तु कहीं न कहीं कुछ विरोधाभास भी मेरे मन में उनके प्रति है और मैं समय-समय पर लिखता रहता हूं, जिसे बताने के लिए आज का दिन सही नहीं हैं। महात्मा गांधी के जन्मदिन के सुअवसर पर समस्त देशवासियों को अशेष शुभकामनाएं।
एक कहावत है कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। दुर्भाग्य से यह कहावत शायद आज के ही दिन के लिए बना है। बड़ी मछली यहाँ भी छोटी मछली को खा गई। निश्चित रूप से अपने महात्मा गांधी महामानव थे। भारतीय राजनीति में वे एक ऐसे विशाल वटवृक्ष की भांति थे,
जिनकी शीतल छाया में आज भी समस्त राजनीतिक व्यवस्था व गतिविधि सुरक्षित व सुसज्जित है और गांधीवाद उनका हिफाज़त करता है। भारत भूमि पर गांधी का आविर्भाव महज़ एक घटना नहीं बल्कि नियति द्वारा प्रेषित श्रीराम के दूत के रूप में हैं, जिन्होंने अपने सिद्धांतों में रामराज की कल्पना की।
भले ही धर्मनिरपेक्षता का चेहरा बने सत्ता संपोषित लोगों ने उन्हें राष्ट्रपिता कह कर संबोधित किया। परंतु सत्य तो यह है कि यदि वे जिन्दा रहते तो अपने आराध्य श्रीराम को ही इस पद के सबसे उपयुक्त बताते, क्योंकि उनकी जिंदगी राम से शुरू होकर अंत भी हे राम! से ही हुई। भाई कोई सत्ता आए गांधीवाद के बिना टिक नहीं सकता।
माना कि विभिन्न परिस्थितियों में उनके द्वारा कुछ ऐसे निर्णय लिए गए जो सबके अनुरूप नहीं थे, परन्तु भारत भूमि पर गांधीवाद की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि इसे हिलाना किसी भी दलों के लिए नामुमकिन है। अतः उनका जन्मदिन तो धूमधाम से मनना ही चाहिए।
परंतु भारतीय राजनीति में एक ऐसे व्यक्तित्व का भी प्रादूर्भाव हुआ, जो इमानदार व विकासवादी थे। इसमें एक गरीब, कदकाठी से कमजोर पर भरपूर ईमानदार व्यक्तित्व लाल बहादुर शास्त्री की क्या गलती है कि उनका भी जन्म गाँधीजी के जन्मदिन के ही दिन हुआ है।
यह तो ईश्वर की मर्जी थी कि उनका भी जन्म आज के दिन ही हुआ। परंतु लोग उनकी जन्म जयन्ती को दबे स्वर में मनाते हैं। शायद इसीलिए क्योंकि उनके हाथ में लाठी नहीं है, यही न ? या नहीं तो सत्ता सेकुलरवाद में गांधीवाद आगे निकल गए और इमानदारी तथा विकासवाद पीछे रह गया।
अब पता नहीं क्या हुआ पर इतना अवश्य है कि जिस जोश से हम गांधी का जन्मदिन मनाते हैं, उस जोश से शास्त्री का जन्मदिवस कहां मना पाते हैं? जितनी भी योजनाओं की घोषणाएं की जातीं हैं सब तो गांधी बाबा के ही नाम होती है।
शास्त्री के नाम तो दूर-दूर तक नहीं होते, जबकि हमें यह जानना आवश्यक है कि शास्त्री द्वारा मैक्सिको से उच्च कोटि के गेहूं के बीज का आयात कर भारत में हरित क्रांति की नींव रखी गई थी। तभी तो मैंने कहा कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है। वो तो कुछ वर्षों से राष्ट्रवादियों की पकड़ सत्ता पर बढ़ी, इसलिए अब गांधी के समकक्ष एक शास्त्री की भी तस्वीर रखकर उनका जन्मदिन भी मनाया जाता है।
✍️ प्रो सुबोध कुमार झा
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