झारखंड का ये अनोखा गांव जो दामादों से बसा हुआ है
झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में एक गांव दामादों से (This unique village of Jharkhand is inhabited by sons-in-law) बसा है। इसी वजह से गांव का नाम भी जमाईपाड़ा पड़ गया. पूरा गांव ओडिय़ा भाषियों का है, जहां दामाद को ज्वाईं कहा जाता है, लेकिन बोलचाल में आसान होने की वजह से इसका नाम जमाईपाड़ा हो गया। बांग्ला में दामाद को जमाई कहा जाता है.
आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र से सटा यह गांव लगभग उसी समय बसा था, जब आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र का गठन हुआ था. यह गांव आदित्यपुर नगर निगम के अधीन आता है। यहां के वार्ड सदस्य पार्थो प्रधान बताते हैं कि आसंगी गांव आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र के स्थापित होने के पहले से बसा है.
यह आसंगी मौजा में आता है, जिसकी सीमा आदित्यपुर से लेकर गम्हरिया स्थित सुधा डेयरी तक थी. यह सरायकेला राजघराने के राजा आदित्य प्रताप सिंहदेव की रियासत का हिस्सा था. गोपाल प्रधान बताते हैं कि दामाद को बसाने की शुरुआत 1982 में उनके पिता अमूल्यो प्रधान ने की थी.
देखते ही देखते यहां करीब दामादों के 20 घर हो गए. चूंकि दामादों का घर एक अलग भूखंड में था, लिहाजा इस गांव का नाम जमाईपाड़ा हो गया. अब इस गांव में करीब 200 परिवार हैं, जहां कई दूसरे लोग भी जमीन खरीदकर यहां बसे हैं.
हालात है कि अब लोग इस इलाके को आसंगी से कम, जमाईपाड़ा के नाम से ज्यादा जानते हैं. अब यहां के लोग इस गांव का नाम बदलकर लक्ष्मीनगर करने पर विचार कर रहे हैं. इस गांव में हिंदी व अंग्रेजी माध्यम का आदर्श हाई स्कूल और एक ओडिय़ा मध्य विद्यालय भी है, लेकिन यहां चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं है.
गांव के गोपाल प्रधान बताते हैं कि इतनी आबादी होने के बावजूद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी नहीं है. कोई बीमार पड़ता है, तो जमशेदपुर या आदित्यपुर जाना पड़ता है. आदित्यपुर का स्वास्थ्य केंद्र भी करीब पांच किलोमीटर दूर है. गांव के अधिकतर लोग आसपास की कंपनियों में काम करते हैं.
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