साहिबगंज: संविधान दिवस पर कई कार्यक्रम हुए आयोजित


Sahibganj News : एनएसएस (NSS) की ओर से  साहिबगज महाविद्यालय  के बी एड भवन में गुरुवार को  71 वां  संविधान दिवस के अवसर पर विचार - विमर्श गोष्ठी सह संकल्प सभा का आयोजन किया गया, जिसमें महाविद्यालय के  दर्जनों छात्रों एवं शिक्षकों ने  भाग लिया। कार्यक्रम एनएसएस के नोडल अधिकारी डॉ. रणजीत कुमार सिंह के नेतृत्व में किया गया।

साहिबगंज कॉलेज में संविधान दिवस पर कई कार्यक्रम हुए आयोजित

गोष्ठी को संबोधित करते हुए श्री सिंह ने कहा कि  यह एक ऐसा अवसर है, जहां हमें अपने संविधान को ना सिर्फ जानने समझने का मौका मिलता है , बल्कि उसके कर्तव्य भावना, उपलब्धियां और चुनौतियों पर भी चर्चा होती है।

उन्होने कहा कि भारत का संविधान स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही विचार-विमर्श के साथ ही शुरू हुई थी। महात्मा गांधी ने 1922 में सबसे पहले यह बात कही थी कि भारत की जनता को अपनी नियति  सुननी होगी। उन्होंने कहा था कि स्वराज ब्रिटिश संसद का तोहफा ना होकर भारत की जनता द्वारा अपनी मर्जी से चुने गए गतिविधियों से उदित होता है। 


डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान सभा में यह  चेतावनी दी थी कि राजनीतिक लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए सामाजिक और आर्थिक समानता आवश्यक है। इसके अभाव में राजनीतिक लोकतंत्र का अभाव  हो जाएगा।
श्री सिंह ने आगे कहा कि संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान की रचना दिसंबर 1946, नवंबर 1949 के दौरान हुई थी। 


जब हम संविधान और उसके द्वारा लगाए गए सामाजिक परिवर्तन की  बात करते हैं तो  संविधान से शासन व्यवस्था को चलाने का एक कानूनी दस्तावेज ही नहीं है, बल्कि यह हमारे लक्ष्य, मूल्य एवं आदर्शों को भी दर्शाता है। भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से अनेक परिवर्तन हुए।

सिर्फ आजादी मिलने और भारत एक संपूर्ण संप्रभु राष्ट्र बना बल्कि ऐसे अनेक कानून भी  बने, भूमि सुधार जिम्मेदारी भूमि सुधार जमीदारी उन्मूलन जैसे कानून बने, जो सामाजिक और आर्थिक क्रांति की दिशा में एक पहल थी।


गरीबी उन्मूलन, समान वेतन, वृद्धा पेंशन, दिव्य ज्ञान के लिए योजनाएं जैसे कार्यक्रम शुरू किए गए। देश की आधी आबादी महिलाओं की है सदियों से महिलाओं को समाज में लिंग भेद का सामना करना पड़ रहा है। आजादी के बाद महिलाओं को  मताधिकार का अधिकार मिला। 

इसी अधिकार के लिए पश्चिम के देशों की महिलाओं को लंबा संघर्ष करना पड़ा था। संविधान में 73 एवं 74वें  संशोधन को लाकर महिलाओं को पंचायतों एवं स्थानीय निकायों में आरक्षण देकर उन को सशक्त बनाने का प्रयास किया गया। मौलिक अधिकार के तहत ना सिर्फ  सामाजिक समानता के अवसर की प्राप्ति हुई बल्कि , सभी को समानता भी  प्रदान की गई।


उन्होंने आगे कहा कि आरक्षण का प्रावधान  करके आदिवासी, पिछड़े, एवं दलित समुदाय के लोगों को सामाजिक न्याय दिलाने का भी कार्य किया गया। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की व्यवस्था से मुक्ति सहित अनेक लोक कल्याणकारी योजनाएं लागू की गई है, जो सामाजिक क्रांति को बढ़ावा देता है।

पिछड़े, दलित, आदिवासियों महिलाओं, और बच्चों को शोषण से मुक्ति लाने के लिए संविधान में छुआछूत नहीं  माना जाता है।शरीर के व्यापार और बाल मजदूरी पर भी रोक सहित बंधुआ मजदूर पर रोक लगाई गई है। शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकार में सम्मिलित कर मर्यादा युक्त जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त किया गया है।


उन्होंने कहा कि  कश्मीर से धारा 370 हटाकर  देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता को मजबूत करने का प्रयास किया गया है। भारतीय संविधान के अनेक क्षेत्रों में कामयाबी मिली है। लेकिन आज भी संप्रदायिकता महिलाओं की सुरक्षा, आतंकवाद, अलगाववाद, जनसंख्या नियंत्रण, राजनीति का अपराधीकरण, मौलिक कर्तव्य के प्रति लोगों को उदासीनता जैसे मुद्दे हैं जिस का संवैधानिक समाधान ढूंढना होगा।

विचार - विमर्श गोष्ठी कार्यक्रम का संचालन डॉ. संतोष कुमार चौधरी व धन्यवाद प्रो.रंजीत सिंह ने किया। गोष्ठी सभा में डॉ. ज्योति कुमार सिंह, डॉ. संतोष कुमार चौधरी ,प्रो.  मिथिलेश कुमार, प्रो. सेंट फ्रांसिस मुर्मू, एनएसएस वॉलिंटियर्स आकाश तिवारी, आदर्श कुमार, विनय टुडू, आकांक्षा, दीपांजलि, साहिल, मनीषा, संजय, रोहित, आदि उपस्थित थे।


इसी क्रम में पुलिस लाइन मैदान में पुलिस अधीक्षक अनुरंजन किस्पोट्टा के नेतृत्व में संविधान दिवस को विधिवत रूप से मनाया गया। आरक्षी अधीक्षक श्री किस्पोट्टा ने कहा कि डॉक्टर भीमराव अंबेडकर को भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है।

हमारे देश का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है। 1949 में संविधान सभा में औपचारिक रूप से भारत के संविधान को अपनाया एवं देश में इसे लागू किया।बता दें कि  सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, नागरिकों के बीच संविधान के मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए हर साल 26 नवंबर को राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में मनाता है।

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