विश्व भू- वैज्ञानिक दिवस पर साहिबगंज महाविद्यालय में हुआ गोष्ठी का आयोजन


Sahibganj News : विश्व जियोलॉजिस्ट डे (विश्व भूवैज्ञानिक दिवस) के अवसर पर साहिबगंज महाविद्यालय के विज्ञान विभाग की ओर से रविवार को एक विमर्श गोष्ठी का आयोजन किया गया था। यह गोष्ठी जूम एप पर ऑनलाइन किया गया।

wishv bhu- waigyanik divas par sahibganj college me hua goshthi ka aayojan

जिसमें झारखंड, बिहार, दिल्ली, नागपुर, हैदराबाद आदि स्थानों से भू- विज्ञान के विशेषज्ञ, प्रोफेसर और प्रोफेशनल जुड़कर अपने - अपने विचारों को रखा। गोष्ठी का विषय था, "राजमहल की पहाड़ियां और इसके वैज्ञानिक महत्व"।

राजमहल की पहाड़ी बनने के रहस्य के विषयों पर सभी लोगों ने अपने - अपने विचारों के माध्यम से राजमहल पहाड़ी को सुरक्षित और संरक्षित करने तथा इसके शोध कार्य को बढ़ावा देने के लिए एकजुट होकर कार्य करने की संभावना एवं शोध के माध्यम से संकल्प लिया।

विश्व भूवैज्ञानिक दिवस गोष्ठी में मुख्य रूप से पूर्व कुलपति सह विख्यात भू वैज्ञानिक और इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. सुरेश प्रसाद सिंह ने राजमहल की पहाड़ी को सुरक्षित करने एवं इस पर शोध कार्य और जियो हेरिटेज साइट घोषित करने के लिए उन्होंने हर संभव मदद करने की बात कही।


उन्होंने कहा कि झारखंड के वरीय पदाधिकारी एवं मंत्री से उनकी बातें हो रही है और जल्द ही राजमहल की पहाड़ियों को बचाने के लिए एक प्रयास किया जाएगा।

वहीं विषय परिवेश करते हुए विशिष्ठ अतिथि, वक्ता, निदेशक  जिओमिट्स व महाविद्यालय के भू विज्ञान विभाग के पूर्व छात्र डॉ. राजेश पॉल ने राजमहल पहाड़ी बनने के पीछे का कारण टेक्टोनिक प्लेट के मूवमेंट को बताया।
 
डॉ. रणजीत कुमार सिंह ने गोष्ठी का  संचालन करते हुए बताया कि पहले मडगास्कर और ऑस्ट्रेलिया प्लेट एक साथ जुड़े हुए थे और उन्हें गोंडवानालैंड कहा जाता था।


टेक्टोनिक प्लेट्स जब अंटार्कटिका से उत्तर की ओर आ रही थी, तब Kerguelen आइलैंड जो कि Large Igneous Province है, वहां से लावा फ्लो से राजमहल की पहाड़ियों का निर्माण हुआ। कुल मिलाकर 9 लावा फ्लो हुए।

पहला लावा फ्लो तकरीबन 11 करोड़ वर्ष पूर्व एवम अंतिम लावा फ्लो 7 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। इस प्रकार लगभग 4 करोड़ वर्ष की अवधि में राजमहल की पहाड़ियों का निर्माण हुआ है।

प्रत्येक लावा फ्लो के बीच इंटर trappean बेड्स का निर्माण हुआ। जोकि सेडीमेंट्री (अवसादी) रॉक्स हैं, जिनमें दुर्लभ पादप फॉसिल्स पाए जाते हैं। यहां petrified वुड फॉसिल्स भी पाए जाते हैं। वर्तमान में राजमहल की पहाड़ियों का विस्तार उत्तर में कहलगांव, साहिबगंज और दक्षिण में दुमका से दक्षिण सूरी, बीरभूम जिला तक पाया जाता है।


CMPDI के सेवानिवृत्त  जियोलॉजिस्ट नगुला सत्यनारायण एवम जियोलॉजिस्ट डॉ. आनंद सिंह चौहान ने अपने विद्यार्थी जीवन की यादों को साझा किया। जब उन्होंने राजमहल की पहाड़ियों में भुवैज्ञानिक फिल्ड वर्क किया था और पेट्री फाइड वुड, पेट्री फाइड फॉसिल्स संग्रह किया था।

वहीं केंद्रीय साउथ बिहार विश्वविद्यालय गया के डॉ. विकल कुमार ने भी अपनी जानकारी साझा करते हुए राजमहल हिल्स पर जल्द ही अपने छात्रों के साथ साझा शोध कार्य करने की बात कही।

विमर्श  गोष्ठी में जुड़ने वालों में जीएसआई के डॉ. रवि शंकर चौबे, डॉ. मेरी सोरेन, प्रो. पी के जैन छतरपुर, भू- विज्ञान के मोहम्मद हैदर अली, राजा सिकेश मंडल, पूजा, प्रगति, नीलेश, विनय टुडू, साहिल, इरफान, सुजीत तिवारी, संजय कुमार पटेल, नीलेश पराशर,


सुजीत तिवारी, संजय कुमार पटेल, श्रीकेश मंडल, विकल, पराग दलाल,  विनायक टूडू, निलेश पराशर आदि दर्जनों छात्रों ने ऑनलाईन गोष्ठी से जुड़े।

Sahibganj News के साथ WhatsApp, Telegram पर जुड़े और पाए डायरेक्ट खबर अपने मोबाइल पर, whatsapp पर क्लिक करके जुड़ें

(Note:- जो लोग साहिबगंज न्यूज़ के ग्रुप 1, 2, 3, 4 और 5 से जुड़ें है वो लोग इस ग्रुप में ज्वाइन नहीं होंगे, चूँकि सभी ग्रुप में एक साथ एक ही न्यूज़ प्रसारित होगा)
By : Sanjay Kumar Dhiraj

0 Response to "विश्व भू- वैज्ञानिक दिवस पर साहिबगंज महाविद्यालय में हुआ गोष्ठी का आयोजन"

Post a Comment

साहिबगंज न्यूज़ की खबरें पढ़ने के लिए धन्यवाद, कृप्या निचे अनुभव साझा करें.

Iklan Atas Artikel

Iklan Tengah Artikel 2

Iklan Bawah Artikel