आलेख : बेटियां हैं तो मुमकिन है समाज का विकास : आमरीन परवीन की कलम से
बेटियां वो तौहफा है जिसे हर किसी को खुदा नहीं देता, बेटियां वो हस्ती है, जो दुनिया बदलने की क्षमता रखती है। इसके अलावा बेटियों की वजह से आज हमारा समाज सांस लेने लायक बन पाया है। हालांकि अफसोस मुझे इस बात की होती है कि अभी भी छोटी मानसिकता और दकियानूसी सोच की वजह से कुछ लोग कोख में ही अपनी बिटिया का गला घोट देते हैं और यदि वह जन्म ले भी लेती है तो उसे एक बोझ की तरह देखा जाता है।
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यदि एक बेटी पढ़ती है तो वो दो परिवार को शिक्षित करती है, हमें अपने समाज में भेदभाव को खत्म करना इस कदर जरूरी है, जैसे सांस लेने के लिए हवा से धूल कण का साफ होना। यदि हमें अपने देश को विकसित करना है, अपने समाज को आगे बढाना है, तो सबसे पहले हमें बेटियों के साथ भेदभाव खत्म करना होगा।
"एक बेटी ही मां बनती है, मां से ही परिवार बनता है, परिवार से ही समाज बनता है और समाज से ही देश बनता है।" अब हमें इस वाक्य से सीख लेनी चाहिए कि बेटियां संभालना मतलब देश संभालना... हर उस मां - बाप को सलाम, जो बेटियों के पिता हैं, वे अपनी बेटियाें को नहीं बल्कि वो देश को संभालना रहे हैं।
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