"हांसी - हांसी चढ़बो फांसी" तिलका मांझी : जन्मदिन विशेष



"हांसी - हांसी चढ़बो फांसी" तिलका मांझी : जन्मदिन विशेष



वीर आदिवासी थे तिलका मांझी

तिलका मांझी भारत में ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वाले पहाड़िया समुदाय के वीर आदिवासी थे। तिलका मांझी के बारे में कहा जाता है कि उनका जन्म 11.2.1750 ई. में हुआ था। 1771 से 1784 तक उन्होंने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध लंबी और कभी न समर्पण करने वाली लड़ाई लड़ी और स्थानीय महाजनों - सामंतों व अंग्रेजी शासक की नींद उड़ाए रखा।


रामगढ़ कैम्प से अंग्रेजों को भगाया

इन्होंने 1778 ई. में पहाड़िया सरदारों से मिलकर रामगढ़ कैंप पर कब्जा करने वाले अंग्रेजों को खदेड़ कर कैंप को मुक्त कराया। 1784 में जबरा ने क्लीवलैंड को मार डाला। बाद में आयरकुट के नेतृत्व में जबरा की गुरिल्ला सेना पर जबरदस्त हमला हुआ, जिसमें कई लड़ाके मारे गए और जबरा को गिरफ्तार कर लिया गया।




इतिहास ने जिसे भुला दिया

पहाड़िया समुदाय का यह गुरिल्ला लड़ाका एक ऐसी किंवदंती है, जिसके बारे में ऐतिहासिक दस्तावेज सिर्फ नाम भर का उल्लेख करते हैं, पूरा विवरण नहीं देते। लेकिन पहाड़िया समुदाय के पुरखा गीतों और कहानियों में इसकी छापामार जीवनी और कहानियां सदियों बाद भी उसके आदिविद्रोही होने का अकाट्य दावा पेश करती हैं।

दरअसल, जबरा प्रत्यक्षतः भागलपुर के तत्कालीन जिला कलेक्टर क्लीवलैंड द्वारा गठित ‘पहाड़िया हिल रेंजर्स’ के सेना नायक के रूप में अंग्रेजी शासन के वफादार बनने का दिखावा करते थे और नाम बदल कर ‘तिलका’ मांझी के रूप में अपने सैंकड़ों लड़ाकों के साथ गुरिल्ला तरीके से अंग्रेज शासक, सामंत और महाजनों के साथ युद्धरत रहते थे।

वैसे, पहाड़िया भाषा में ‘तिलका’ का अर्थ है गुस्सैल और लाल-लाल आंखों वाला व्यक्ति। चूंकि वह ग्राम प्रधान था और पहाड़िया समुदाय में ग्राम प्रधान को मांझी कहकर पुकारने की प्रथा है। इसलिए हिल रेंजर्स का सरदार जौराह उर्फ जबरा मांझी तिलका मांझी के नाम से विख्यात हो गए। ब्रिटिशकालीन दस्तावेजों में भी जबरा पहाड़िया मौजूद है, पर तिलका का कहीं नामोल्लेख नहीं है।

साहित्य में तिलका मांझी

बांग्ला की सुप्रसिद्ध लेखिका महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी के जीवन और विद्रोह पर बांग्ला भाषा में एक उपन्यास 'शालगिरर डाके' की रचना की है। अपने इस उपन्यास में महाश्वेता देवी ने तिलका मांझी को मुर्मू गोत्र का संताल आदिवासी बताया है। यह उपन्यास हिंदी में 'शालगिरह की पुकार पर' नाम से अनुवादित और प्रकाशित हुआ है।

तिलकामांझी के नाम पर विश्वविद्यालय हिंदी के उपन्यासकार राकेश कुमार सिंह ने अपने उपन्यास ‘हूल पहाड़िया’ में तिलका मांझी को जबरा पहाड़िया के रूप में चित्रित किया है। ‘हूल पहाड़िया’ उपन्यास 2012 में प्रकाशित हुआ है। लालू प्रसाद यादव की सरकार ने 1990 में तिलका मांझी के नाम पर भागलपुर विश्वविद्यालय का नाम तिलका मांझी विश्वविद्यालय, भागलपुर कर दिया था।

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