अस्पृश्यता (छुआछूत) / Untouchability | आइये समझते हैं साधारण शब्दों में | लेखक : अमृता तिवारी
नमस्कार पाठकों मैं अमृता तिवारी आज लंबे अंतराल के बाद हाजिर हुई हूँ।
बस जैसा हुआ था होते जा रहा है।
हमारे देश में जातियों को अलग - अलग तरीके से बांटा गया है। यह प्रथा आज से ही नहीं बल्कि प्राचीन काल से चली आ रही है।हमारे यहां जाति को 4 वर्गों में बांटा गया है, ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय, और शुद्र। सबसे नीची जाति शुद्र होती है।
ऊँच-नीच का भाव यह रोग है, जो समाज में धीरे धीरे पनपता है और सुसभ्य एवं सुसंस्कृत समाज की नींव को हिला देता है। परिणामस्वरूप मानव-समाज के समूल नष्ट होने की आशंका रहती है।परिवर्तन जीवन का नियम है। पिछले समय में कौन कैसे रहता था, उसकी दिनचर्या जो थी वो आज पूरी तरह से बदल चुकी है।
आज हर एक व्यक्ति शिक्षित है,हर एक व्यक्ति सही गलत के बीच का फर्क जान रहा है,कैसा भोजन करना है,कैसा वस्त्र पहनना है, कैसी पढ़ाई होनी चाहिए,कैसा परिवारिक माहौल होना यह सब पता है इसीलिए परिवर्तन को अगर हम अपनाले और आपसी मनभेद को कम कर ले तो सब कुछ बेहतर हो सकता है।
मानव रूपी मिले इस जीवन को सफल बनाने के लिए जो मूल मंत्र इन्सानियत है।जाति और रंग रूप के आधार पर भेदभाव कर कभी कुछ हासिल ना हुआ है ना आगे होगा। उम्मीद करती हूं मैं अपनी बात आप लोगों तक पहुंचा पाई हूं। यकीनन इसे स्वीकार करने में हमें समय लगेगा। हमारे पिछले पीढ़ी को यह समझाने में समय लगेगा मगर हम कोशिश जरूर कर सकते हैं।
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