कृषि उपज एवम पशुधन विपणन विधेयक" एक काला बिल है : ईस्टर्न झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, रद्द हो यह बिल नहीं तो सड़क से लेकर सदन तक होगा आंदोलन, व्यापारियों के साथ हुआ धोखा


साहिबगंज :- ईस्टर्न झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज साहिबगंज के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल ने "कृषि उपज व पशुधन विपणन" बिल को काला बिल करार दिया है।

कृषि उपज एवम पशुधन विपणन विधेयक" एक काला बिल है : ईस्टर्न झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज, रद्द हो यह बिल नहीं तो सड़क से लेकर सदन तक होगा आंदोलन, व्यापारियों के साथ हुआ धोखा



उन्होंने कहा कि 'कृषि उपज व पशुधन विपणन' नामक काला बिल लाकर झारखंड सरकार ने लगभग 3.25 करोड़ जनता और व्यापारियों के साथ धोखा किया है, साथ ही साथ झारखंड की जनता को एक और महंगाई की भट्टी में झोंकने का काम किया है।

इस संबंध में उन्होंने बताया कि कृषि उपज व पशुधन विपणन विधेयक को राज्य के वर्तमान कृषि मंत्री बादल पत्रलेख के द्वारा 25 मार्च 2022 को विधानसभा में पास करा कर राज्यपाल के पास भेजा था, लेकिन कृषि उपज व पशुधन विपणन विधेयक में त्रुटि रहने के कारण राज्यपाल ने राज्य सरकार को वापस कर दिया था।

 कृषि उपज विपणन विधेयक के विरोध में फेडरेशन झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के मुख्यालय रांची में 17 अप्रैल 2022 को झारखंड के लगभग 500 व्यापारियों ने हिस्सा लिया और एकमत से यह निर्णय लिया कि, जब तक इस विधेयक को वापस नहीं लिया जाता, तब तक सड़क से सदन तक शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन चलाएंगे। 

लगभग1 महीने आंदोलन चलने के बाद सरकार की नींद टूटी और सरकार के मंत्री आलमगीर आलम और  दीपिका पांडे सिंह आगे आए और फेडरेशन झारखंड चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के प्रतिनिधि की बातों को सुना और उन्हे आश्वस्त किया कि यह बिल विधानसभा में दोबारा नहीं लाया जाएगा। दोनों नेताओं ने आंदोलन समाप्त करने की अपील की थी।

आगे उन्होंने बताया कि फेडरेशन झारखंड चेंबर कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज ने उनके आश्वासन पर उस आंदोलन को स्थगित करने का निर्णय लिया था। जिसका नतीजा यह हुआ कि एक बार फिर कृषि मंत्री बादल पत्रलेख के द्वारा 23 दिसंबर 2022 को फिर से विधानसभा में पास कर राज्य की लगभग 3:25 करोड़ जनता और लगभग 3:50 लाख व्यापारियों और  किसानों पर एक अतिरिक्त कर लगाने का प्रयास किया, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। 

कृषि उपज व पशुधन विधायक के पास हो जाने से पूरे राज्य के व्यापारियों में असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो गई है। वर्तमान में हमारे पड़ोसी राज्य बिहार सहित अन्य राज्यों में बाजार समिति शुल्क नहीं है। यह एक अप्रत्यक्ष कर है और कृषि मूल्य के लागत में जुड़ जाता है, इसलिए इस शुल्क को लगाए जाने पर यहां कृषि उत्पादों की लागत मूल्य में वृद्धि होगी, जिससे यहां के किसानों और व्यापारियों को अपने उत्पादों की खरीद - बिक्री में नुकसान उठाना पड़ेगा, तथा इनके व्यापार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जबकि इसका फायदा पड़ोसी राज्य के कृषि व्यापारियों को मिलेगा।

उन्होंने बताया कि राज्य के बाहर से मंगाए जाने वाले उत्पादों पर यह शुल्क लगाए जाने का कोई भी औचित्य नहीं है। शुल्क लग चुके वस्तुओं पर झारखंड राज्य में भी अलग से तहत शुल्क लगाए जाने की स्थिति में एक ही वस्तु पर दोबारा शुल्क लगाने के कारण महंगाई बढ़ेगी और इसका सीधा असर आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा और झारखंड में धान के मूल्य में वृद्धि होगी, जिससे हमारे यहां चावल के मूल्य हमारे पड़ोसी राज्य बिहार, बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़ के मुकाबले अधिक हो जाएगा। 

इन प्रतिकूल परिस्थितियों में यहां का चावल का व्यापार अन्य राज्यों में स्थानांतरण होने लगेगा, जिसका सीधा असर राज्य की जनता के साथ साथ साहिबगंज की जनता पर भी होगा।
 
उन्होंने बताया कि पूर्व की सरकार ने कृषि उपज व पशुधन विपणन नामक काले कानून को औचित्यहीन बताते हुए रद्द कर दिया था। चावल की लागत बढ़ जाने से माल की कीमत बढ़ जाएगी और राज्य के व्यापारियों को बड़े घाटे की ओर ले जाएगा। झारखंड सरकार इस बिल को तुरंत रद्द करते हुए वापस नहीं लेती है  तो आने वाले दिनों में झारखंड के लगभग 3:50 लाख व्यापारी सड़क से सदन तक आंदोलन करने को विवश होंगे, इसकी सारी जिम्मेवारी राज्य सरकार की होगी।

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