"सिनेमा की बातें" मुश्ताक खान


नोरंजन

पिछले पचास सालो से हमारा मनोरंजन करने वाले मुशताक खान को आज भी बहुत कम लोग ही इनके नाम से जानते हैं। जबकी अभिनय के मामले मे ये कुछ बड़े स्टार से भी आगे हैं।

"सिनेमा की बातें" मुश्ताक खान

 31 दिसम्बर 1959 को बालाघाट मध्य प्रदेश मे जन्मे मुस्ताक बचपन से ही लोगो के मनोरंजन के लिए जाने जाते थे। बचपन मे इन्हे जब रामलीला मे काम करने का मौका मिलता, तो ये पूरी जान लगा देते थे की लोग हंसे, ताकि सभी का मनोरंजन हो सके। सातवीं क्लास से ही ये नाटको से जुड़ गए थे, फिर कॉलेज मे भी ये नाटको मे काम करने लगे। इनके काम से ख़ुश होकर इन्हे आर्ट्स एंड कल्चर प्रोग्राम का सेक्रेटरी बना दिया गया।

इनके दोस्त और टीचर इनसे अक्सर कहा करते थे की तुम जैसे अच्छे कलाकार को इस छोटी सी जगह मे नहीं रहना चाहिए। बहार निकलो कुछ बड़ा करो। यही बात जब इन्होने अपने घरवालों से कही तो वो नाराज होकर बोले, कोई जरूरत नहीं मुंबई जाने की, यहीं रहो और कपड़ो के अपने खानदानी काम को आगे बढ़ाओ। मगर इनके अंदर का कलाकार तो उड़ना चाहता था, लेकिन घरवाले इन्हें डांटते, धमकाते और पिटाई भी कर देते थे, लेकिन इनके बड़े भाई इनका स्पोर्ट करते थे और उन्होंने ही घरवालों से कह कर इनके मुंबई जाने का इंतजाम करवा दिया और इन्हे मुंबई जाने वाली ट्रेन मे बैठा दिया।
 
ये मुंबई आ तो गए, लेकिन इनके पास रहने की कोई जगह नहीं थी, सो रेलवे स्टेशन पर रात गुजारते, फुटपाथ पे सोते। इनके पास इतने पैसे नहीं थे की रहना और खाना दोनों हो सके। किसी तरह महीनों इन्होने इसी तरह गुजारी। इनके घरवाले इन्हे कहते घर वापस आ जाओ और कितना परेशान होगे, पर मुशताक अपने घरवालों से कहते की उन्हें मुंबई में कोई परेशानी नहीं है। मगर सच तो ये था कि इनका एक - एक दिन पहाड़ के समान गुजरता था।

ये दिन भर काम की तलाश मे लोगों से मिलते, मगर सब किसी ना किसी बहाने से मना कर देते। लगातार रिजेक्ट किये जाने से ये उदास रहने लगे। रात मे जब ये अपने घर और अपने दोस्तों के बारे में सोचते। तब इनकी आंखों में आंसू आ जाते, मगर मुश्ताक ने हार नहीं मानी। वे अक्सर कहा करते थे, जीना यहां मरना यहां, इसके सिवा जाना कहां। इसके बाद उन्होंने एक थिएटर ग्रुप ज्वाइन कर लिया।
 
एक दिन जब ये एक नाटक मे काम कर रहे थे तो मशहूर फ़िल्म निर्माता इस्माइल श्रॉफ की नजर इन पर पड़ी। उन्हें इनका अभिनय पसन्द आया और इन्हे अपनी फ़िल्म 'थोड़ी सी बेवफाई' में काम करने का ऑफर दिया। इस तरह मुश्ताक खान का फ़िल्मी सफर शुरू हुआ। इसी तरह एक दिन इनकी मुलाक़ात लेखक सलीम खान से हुई। उन्होंने मुश्ताक को बताया की वह उनका अभिनय देख चुके हैं ज़ब वो पृथ्वी थिएटर में लोककथा नाटक कर रहे थे। जो इनको बेहद पसन्द आया था। सलीम जी ने इन्हे महेश भट्ट साहब से मिलवाया और फ़िल्म 'कब्जा' में कोई रोल देने को कहा।

महेश जी ने कहा ठीक है।

जब महेश जी ने मुश्ताक का काम देखा तो वो बेहद ख़ुश हुए और मुश्ताक को अपनी लगभग हर फ़िल्म में काम दिया। मुश्ताक ने ' सड़क', 'दिल है की मानता नहीं', 'साथी', 'आशिकी', 'जूनून', 'गुमराह', 'गोपी किशन', 'राजा', 'वेलकम', 'गदर', 'क्रन्तिवीर', 'हम हैं राही प्यार के', 'नाराज', 'सर' जैसी सैकड़ों फिल्मों में छोटे - बड़े रोल किए। साथ ही इन्होंने टीवी के कई हास्य शो भी किए हैं।

जिस तरह ये दिल से काम करते थे और अच्छा काम करते थे तो लोग इन्हे अनदेखा नहीं कर पाए और इन्हें एक उम्दा अभिनेता मानना ही पड़ा। हम भी मानते हैं की इन्होंने जो पचास सालों तक लोगों का मनोरंजन किया, उसके लिए इन्हें ख़ास सम्मान से नवाजा जाना चाहिए। साथ ही उन सभी कैरेक्टर आर्टिस्टों को भी सम्मान मिलना चाहिए, जो सालों साल हमारा मनोरंजन करते हैं, जबकी हम उनका नाम तक भी मुश्किल से ही जानते हैं।

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