"सिनेमा की बातें" बंगाली और हिंदी फिल्मों के बेहतरीन कलाकार, उत्पल दत्त, जानें क्यों कांग्रेस ने 1965 में इन्हें जेल में डाल दिया था, जन्मदिन विशेष


नोरंजन

सत्तर के दशक में भारतीय समांतर सिनेमा की नींव जिन फ़िल्मों से रखी गई थी, उन प्रमुख कृतियों में 'उत्पल दत्त' भी हैं। 

"सिनेमा की बातें" बंगाली और हिंदी फिल्मों के बेहतरीन कलाकार, उत्पल दत्त, जानें क्यों कांग्रेस ने 1965 में इन्हें जेल में डाल दिया था, जन्मदिन विशेष

हिन्दी सिनेमा में उनको भरपूर प्रतिष्ठा और काम ऋषिकेश मुखर्जी की 'गोलमाल' से मिली, जो न आर्ट फ़िल्म बनाते थे और न ही कमर्शियल फ़ार्मुला फ़िल्म बनाते थे। उत्पल दत्त एक उच्च दर्जे के अभिनेता ही नहीं, एक कुशल निर्देशक और नाटककार भी थे।सीरियल से लेकर कॉमेडी तक के हर रोल को उन्होंने बड़ी संजीदगी से निभाया था।

उत्पल दत्त का जन्म 29 मार्च, 1929 को पूर्वी बंगाल (ब्रिटिश भारत) के बारीसाल में एक हिन्दू परिवार में हुआ था। इनके ‌ पिता का नाम गिरिजारंजन दत्त था, जिन्होंने अपने पुत्र को पढ़ाई के लिए कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता) भेजा। उत्पल जी ने वर्ष 1945 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की और फिर 1949 में 'सेंट जेवियर कॉलेज', कोलकाता से अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वर्ष 1960 में उत्पल दत्त ने थिएटर और फ़िल्म एक्ट्रेस शोभा सेन से विवाह किया। डॉक्टर बिष्णुप्रिया उनकी एक मात्र संतान हैं।

 1940 में उत्पल दत्त अंग्रेज़ी थिएटर से जुड़े और अभिनय की शुरूआत कर डाली। शेक्सपियर की साहित्य से उत्पल जी का बेहद लगाव था। इस दौरान उन्होंने थिएटर कंपनी के साथ भारत और पाकिस्तान में कई नाटक मंचित किए। नाटक 'ओथेलो' से उन्हें काफ़ी वाहवाही मिली थी। बाद में उत्पल दत्त का रुझान अंग्रेज़ी से बंगाली नाटक की ओर गया। 1950 के बाद उन्होंने एक प्रोडक्शन कंपनी जॉइन कर ली और इस तरह उनका बंगाली फ़िल्मों से कैरियर शुरू हो गया। बंगाली फ़िल्मों के साथ उनका थिएटर से प्रेम भी जारी रहा। इस दौरान उन्होंने कई नाटकों का निर्देशन ही नहीं, बल्कि लेखन कार्य भी किया। बंगाली राजनीति पर लिखे उनके नाटकों ने कई बार विवाद को भी जन्म दिया।
 
1950 में मशहूर फ़िल्मकार मधु बोस ने उन्हें अपनी फ़िल्म 'माइकल मधुसुधन' में लीड रोल दिया, जिसे काफ़ी सराहा गया। इसके बाद उत्पल दत्त ने सत्यजीत रे की फ़िल्मों में भी काम किया। हिन्दी सिनेमा में उत्पल दत्त एक महान हास्य अभिनेता के रूप में जाने जाते थे। हालांकि उन्होंने बहुत कम फ़िल्मों में काम किया है । 'गुड्डी', 'गोलमाल', 'नरम-गरम', 'रंग बिरंगी' और 'शौकीन' उत्पल की बेहतरीन फिल्म है।

उत्पल दत्त हिन्दी सिनेमा में व्यस्त काफ़ी देर में हुए थे, वैसे बंगाली रंगमंच तथा सिनेमा में उनका बहुत नाम था। उन्होंने हिन्दी फ़िल्मों की अपनी लंबी सूची में बहुधा हास्य प्रधान भूमिकाएं की थीं। मगर अमिताभ बच्चन की प्रथम फ़िल्म 'सात हिन्दुस्तानी' में वे भी एक हिन्दुस्तानी थे। बल्कि एक तरह से देखा जाए तो उत्पल जी ही मुख्य भूमिका में थे और अमिताभ बच्चन समेत अन्य सभी कलाकार सहायक भूमिकाएं निभा रहे थे

 फ़िल्म 'गोलमाल (1979') में ऋषिदा (ऋषिकेश मुखर्जी) ने उत्पल दत्त की गंभीर छवि के विपरित 'भवानी शंकर' के एक ऐसे पात्र की भूमिका दी, जिन्हें मूछों से अधिक लगाव था। हीरो अमोल पालेकर से लेकर दीना पाठक तक के सभी अदाकारों का हास्य अभिनय आज भी एक मिसाल है। किंतु उत्पल दा गंभीर रहकर भी इतना हंसा गए थे कि उस वर्ष 'बेस्ट कमेडियन' का फ़िल्मफ़ेयर एवार्ड उन्हें मिला था। फ़िल्म 'गोलमाल' में उत्पल जी जिस अंदाज़ से 'अच्छाआ....' बोलते थे, वो उनका ट्रेड मार्क बन गया था।

आज भी मिमिक्री आर्टिस्ट उस तकिया कलाम को बोलते हैं, तो दर्शक समझ जाते हैं कि वह उत्पल दत्त की नकल कर रहे हैं। हिन्दी फ़िल्मों में फिर तो उनको हलकी-फुलकी भूमिकाएं मिलतीं गईं। तब ये कौन सोच सकता था कि बंगाली और हिन्दी मनोरंजन जगत के इस दिग्गज अभिनेता ने अपना करियर अंग्रेज़ी रंगमंच से प्रारम्भ किया था।
पुरस्कार व सम्मान

फ़िल्म 'गोलमाल' के लिए उत्पल दत्त को 'फ़िल्म फ़ेयर बेस्ट कॉमेडियन अवार्ड' से नवाजा गया था। बंगाली सिनेमा में फ़िल्म 'भुवन शोमे' के लिए उन्हें 'बेस्ट एक्टर' के तौर पर 'नेशनल फ़िल्म अवार्ड' दिया गया था। उत्पल जी के हास्य अभिनय को ऋषिकेश मुखर्जी से ज्यादा शायद ही किसी अन्य निर्देशक ने काम में लिया होगा। 'गोलमाल' की तरह 'नरम गरम' में भी उनकी जोड़ी अमोल पालेकर के साथ थी और उस में भी उन्हें 'श्रेष्ठ हास्य अभिनेता' का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ था। ऋषिदा की ही 'रंगबिरंगी' ने भी उत्पल दत्त को वही एवार्ड फिर एक बार दिलवाया। किसी एक ही निर्देशक के निर्देशन में किसी एक विभाग में तीन ट्रॉफियाँ जीतने का यह कारनामा विरले ही दिखाई देता है।

उत्पल दत्त 20वीं शदी के प्रोग्रेसिव बंगाली थिएटर के महान नाटककार थे। हिन्दी सिनेमा में अपनी छाप छोड़ने के बावजूद भी उन्होंने नाटक से नाता नहीं तोड़ा। उत्पल जी बड़े मार्क्सवादी विचारों वाले व्यक्ति थे। वे अक्सर वामपंथी दलों के लिए क्रांतिकारी नाटक करते थे। इस कारण उन्हें कांग्रेस ने 1965 में जेल में भी डाल दिया था। 1970 में प्रतिबंध के बावजूद भी उनके तीन नाटकों- 'दुश्वापनेर नगरी', 'एबार राजर पाला' और 'बेरिकेड' के ‌लिए लोगों की बहुत बड़ी उमड़ी थी।
बाद के समय में उत्पल दत्त ने बहुत-सी फ़िल्मों का निर्देशन भी किया, जिनमें- 'मेघ', 'घूम भांगर गान', 'झार', 'बेखाखी मेघ', 'मा' और 'इंकलाब के बाद' आदि।

उत्पल दत्त भारतीय सिनेमा के ऐसे प्रसिद्ध अभिनेता थे, जिन्होंने हिन्दी और बांग्ला फ़िल्मों में अपनी अमिट छाप छोड़ी। एक अभिनेता के रूप में उत्पल दत्त ने लगभग हर किरदार को निभाया। हिन्दी पर्दे पर कभी पिता तो कभी चाचा, कहीं डॉक्टर तो कहीं सेठ, कभी बुरे तो बहुधा अच्छे बने 'उत्पल दा' को दर्शक किसी भी रूप में नहीं भूल सकेंगे। उत्पल दत्त को अधिकतर एक हास्य अभिनेता के रूप में याद किया जाता है।
 हिन्दी तथा बांग्ला सिनेमा में विशिष्ट योगदन करने वाले प्रसिद्ध अभिनेता तथा निर्माता उत्पल दत्त जी का निधन 19 अगस्त , 1993 को हुआ।

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