21 मार्च : विश्व कविता दिवस, प्रोफेसर सुबोध झा की रचना
साहिबगंज : वर्ष 1999 में यूनेस्को ने विश्व स्तर पर कवियों की सृजनशीलता, उनके लेखन, पठन-पाठन, शिक्षण व प्रकाशन को सम्मान देने के उद्देश्य से प्रति वर्ष 21 मार्च को विश्व कविता दिवस मनाने की घोषणा की। यूनेस्को द्वारा साहित्यकारों व उनकी सृजनशीलता को सम्मान देना वास्तव में हमारा हौसला बढ़ाने जैसा है।
आज "विश्व कविता दिवस" पर यूनेस्को सहित सम्पूर्ण साहित्यकारों को शुभकामनाएँ।
इस अवसर पर मैं अपनी एक रचना प्रेषित करता हूँ। जिसमें कविता के गुण, धर्म और उसमें उपस्थित कविता के सम्पूर्ण भावों का दर्शाया गया है क्योंकि-
कवियों के मन में जो भाव आते हैं,
वही तो कविता में लिखे जाते हैं।
कविता का स्वरूप
(1)
अपने शब्दों को पिरोया है हमने कविता में;
मन के भावों को बताया है हमने कविता में;
सारी दुनिया में कई राग हैं सुने हमने;
उन्हीं रागों को सजाया है हमने कविता में।
(2)
कविताओं में मन के भाव देखे जाते हैं;
उन्हीं भावों को तो शब्दों में लिखे जाते हैं;
ऐसे कई भाव आते जाते हैं चंचल मन में;
है वही भाव जो कविता में पढ़े जाते हैं।
(3)
कविताओं में आंसूओं की धार होती है;
कविताओं से दुश्मनों पे वार होती है;
हम भी इन्सान हैं कुछ दर्द सहे हैं हमने;
है वही दर्द जो कविता की सार होती है।
(4)
कुछ ऐसा नहीं कि सिर्फ है रोती कविता;
हास्यव्यंग का भी पुट है देती कविता;
कविताओं में सभी भाव समाहित होते;
छायावाद से दुनियां को जगाती कविता।
(5)
शब्दों की तेज धार में बहती कविता;
कवियों के मन के भाव को पढ़ती कविता;
उन्हीं शब्दों का तो रसपान किया करते हैं;
बस साहित्य की सेवा में है रहती कविता।
प्रो.सुबोध कुमार झा
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