नारी सशक्तिकरण : मात्र एक दिखावा, क्यों चुप है सरकार ?
हमारी दिनचर्या ही भाग–दौड़ से शुरू होती है और इसी बीच कुछ पापियों से जघन्य अपराध भी हो जाते हैं। हमें मालूम तब होता है, जब लोग अपने हाथों में मोमबत्तियां जलाकर सड़कों पर निकलते हैं। आज का लेखन इसी मार्मिक विषय पर...
नारी सशक्तिकरण मात्र एक दिखावा
नारी इस धरा पर सबसे पवित्र व सुंदर प्राणी है। उनका सदा सम्मान करो। वह अपनी मां, बहन, बेटी, पत्नी या मित्र आदि कई रूपों में दिखेंगी। माना कि नारी सौंदर्य का प्रतीक है और सौंदर्य में आकर्षण होता ही है, जिससे प्रेम होना स्वाभाविक है।
परन्तु यदि तुम्हें प्रेम है तो तुम उसे प्रेम से जीतने की कोशिश करो, न कि जबरदस्ती से। लेकिन पता नहीं, आजकल यह कैसी बातें होने लगी है? आए दिन दिल्ली की निर्भया, दुमका में विदेशी महिला, कोलकाता की डॉ. मौमिता आदि जैसी दरिंदगी की घटनाएं अक्सर होती ही रहती हैं, जो मानवता को शर्मसार करती है।
कोई नारी सम्मान की बात ही नहीं करते और करते भी हैं तो सिर्फ सोशल साइट्स पर दो–चार जोश भरी पंक्तियां लिख दिया करते हैं। बस सामने से कोई सामुहिक लड़ाई नहीं लड़ी जाती। उनके सम्मान के लिए कोई अखण्ड आंदोलन ही नहीं होता।
सरकारी संरक्षण भी मिल जाता है दुष्कर्मियों को। साथ ही भारत की न्यायिक प्रक्रिया इतनी जटिल है कि मुजरिम या तो सबूत के अभाव में बरी हो जाता है या ट्रायल होते-होते वर्षों लग जाते हैं। इधर आम जनता और कुछ थोड़े से लोग, अपने हाथों में बस कुछ मोमबत्तियां जलाकर, थोड़ी दूर चलकर मात्र विरोध–प्रदर्शन कर देते हैं।
बस हो गया श्रद्धांजलि... काम खत्म। विडम्बना तो देखिए, कभी–कभी इस पर राजनीति भी शुरू हो जाती है, जब ये हुआ तो किसकी सरकार थी, जो वो हुआ तो किसकी सरकार थी? दुर्भाग्यवश दिल्ली जंतर-मंतर पर मैंने स्वयं देखा है कि वहां विरोध–प्रदर्शन करने वाले भाड़े के लोग भी मिल जाते हैं।
थोड़ा शोर मचाते हैं, पैसे लेते हैं और चले जाते हैं दूसरी जगह, दूसरे विषय पर आन्दोलन करने। यह सत्य है। नहीं विश्वास है तो आप जाएं वहां, और देखें कि वही लोग, वही तख्तियां और वही जगह। सिर्फ विषय अलग–अलग। उफ्फ क्या आंदोलन है? हां उनमें से जो आन्दोलन जोर पकड़ता है, वह राजनीति वाले ले लेते हैं और वही आन्दोलन देशव्यापी होता है।
बड़ी विचित्र स्थिति है। अरे भारत में ही याद है न, नारी सम्मान की रक्षा हेतु लंकादहन और महाभारत तक हो गया है। फिर यह मोमबत्ती गैंग कहां से कारगर सिद्ध हो सकता है। आवश्यकता है सर्वदलीय सहमति की, किसी ठोस निर्णय की, त्वरित कार्रवाई व कठिन सजा की।
बंगाल त्रासदी
डॉ.मौमिता की मासूमियत,
कैसा व्यथित है इन्सानियत,
यह तो निर्भया पार्ट टू है,
हां, वही तो थी हैवानियत।
कैसा था व्यभिचार?
कैसा था अत्याचार?
मानवता थी शर्मसार,
क्यों चुप है सरकार?
सहृदय श्रद्धांजलि
सुबोध झा
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