कोटालपोखरा में पढ़ी गई ईद-उल-अजहा की नमाज़, आपस में गले मिलकर दिया...
कोटालपोखरा में पढ़ी गई ईद-उल-अजहा की नमाज़, आपस में गले मिलकर दिया अमन और भाईचारे का संदेश
ईद- उल -अजहा इस्लाम धर्म के प्रमुख त्योहारों में एक है, जिसे बकरीद नाम से भी जाना जाता है। मुस्लिम समुदाय का यह महापर्व न केवल त्याग का पैगाम देता है, बल्कि अल्लाह की राह में खुद को समर्पित करने का जज्बा भी पैदा करता है। इस दिन मुस्लिम समाज के लोग हजरत पैगंबर इब्राहिम को याद करते हैं।
यह पर्व हजरत इब्राहिम की अल्लाह के प्रति अपने निष्ठा और समर्पण को याद करने के लिए मनाया जाता है। इस दिन जानवरों की कुर्बानी देकर अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं और जरूरतमंद लोगों की मदद करते हैं। यह त्यौहार आपसी भाईचारे और खुशियों का प्रतीक है।
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, हर साल के बकरीद की तारीख चांद की स्थिति पर आधारित होती है। जूल हिज़्ज़ा की दसवीं तारीख को ईद उल अजहा मनाई जाती है, जो रमजान खत्म होने के 70 दिन के बाद आता है। यह त्यौहार त्याग और इंसानियत का प्रतीक माना जाता है।
इस विशेष त्यौहार की शुरुआत सुबह की नमाज से की जाती है, जिसमें सैकड़ों लोग एक साथ अल्लाह से दुआ मांगते हैं। ईदगाह मे ईद- उल- अजहा की नमाज़ अदा करने के लिए मुस्ताक अली, अख्तर अली, इसाक अली, अब्दुल रसीद, अकबर अली, मुहम्मद मारूफ, मोहम्मद नईम, आरिफ आलम, मोहम्मद इम्तियाज, मोहम्मद शाहिद, तनवीर आलम सहित सैकड़ों नमाज़ी उपस्थित थे।
✍️अनूप सा
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