चुनावों में लगाई जाने वाली स्याही कहां बनती है? जानिए इसके एक बूंद की कीमत और खासियत


चुनावों में लगाई जाने वाली स्याही कहां बनती है? जानिए इसके एक बूंद की कीमत और खासियत

साहिबगंज: चुनाव के दौरान मतदाताओं की उंगली पर लगाई जाने वाली स्याही (Election Ink) जितनी सामान्य दिखती है, उतनी ही वैज्ञानिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से खास होती है। यह स्याही मतदाता की पहचान को दोबारा मतदान से रोकने में अहम भूमिका निभाती है।

इस परंपरा की शुरुआत 1962 के आम चुनावों से हुई थी और तब से अब तक भारत के हर चुनाव में इसका उपयोग किया जा रहा है। इस स्याही में सिल्वर नाइट्रेट (Silver Nitrate) जैसे विशेष रासायनिक तत्व मिलाए जाते हैं, जो इसे 20 से 40 सेकेंड में सूखाकर उंगली पर स्थायी निशान छोड़ने में मदद करते हैं। यही कारण है कि स्याही का यह निशान 1 से 2 महीने तक नहीं मिटता।

भारत में यह स्याही सिर्फ दो संस्थानों में तैयार की जाती है —
1️⃣ मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (कर्नाटक)
2️⃣ रायडू लेबोरेटरी (हैदराबाद)

जानकारी के अनुसार, 10 मिलीलीटर की एक बोतल की कीमत करीब ₹127 होती है, जिससे 600 से 700 मतदाताओं को स्याही लगाई जा सकती है।
यानि, एक वोटर पर स्याही का खर्च एक रुपए से भी कम पड़ता है।

भारत की यह चुनावी स्याही न केवल देश में बल्कि कई अन्य लोकतांत्रिक देशों में भी निर्यात की जाती है — और यह लोकतंत्र के भरोसे का सबसे सटीक प्रतीक बन चुकी है।


रिपोर्ट: संजय कुमार धीरज | साहिबगंज न्यूज डेस्क

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