साहिबगंज में मां विषहरी का हुआ विसर्जन...



साहिबगंज में मां विषहरी का हुआ विसर्जन

Sahibganj News: साहिबगंज जिले के बिजली घाट, कबूतर खोपी  घाट, समदा घाट, सुखसेना घाट ,कन्हैया स्थान घाट, सहित जिला के दर्जनों घाटों में दोपहर से देर रात तक मां मनसा की मूर्ति का विसर्जन का सिलसिला लगातार चलता रहा।

विसर्जन से पहले महिलाओं ने विदाई गीत गाए और खोइंचा चढ़ाया। इसके बाद मंजूषा एवं माता मनसा को वाहन, ठेला, निजी वाहन, तो कुछ भक्त अपने सरपर रख कर विसर्जन को लेकर गंगा तट की ओर गए। दोपहर से रात तक शहर के विभिन्न घाटों में विसर्जन का सिलसिला लगातार चलता रहा।

साहिबगंज में मां विषहरी का हुआ विसर्जन

इस बार बहुत स्थान पर प्रतिमा स्थापित नहीं होने के कारण अधिकांश स्थानों में मां मनसा का चित्र बनाकर पूजा अर्चना की गई। हालांकि इस मौके पर बच्चों का उत्साह ज्यादा नजर आया। मुंगेर जिला के उदय कुमार महतो अपने परिवार सहित समदा नाला घाट में विसर्जन किया ।

वहीं टपुआ के बसंत मंडल ने सुखसेना घाट में विसर्जन किया। जबकि जिरवाबाबाड़ी एवं प्रेम नगर के मूर्ति का विसर्जन साहिबगंज घाट में हुआ। मां मनसा के बारे में बहुत सारे ग्रंथों, एवं पुराणों में वर्णन मिलता है। एक कथा के अनुसार, सती बेहुला या बिहुला , मध्यकालीन बांग्ला साहित्य में मनसा मंगल, एवं इसी प्रकार के कई अन्य काव्य कृतियों की नायिका हैं।

13 वीं से 18वीं शताब्दी की अवधि में इस कला पर आधारित बहुत सी रचनाएं गढ़ी गई हैं। इन कृतियों का मार्मिक उद्देश्य मनासा देवी की महत्ता का प्रतिपादन करना था, किंतु यह कृतियां बेहुला एवं उनके पति ,बाला लखंदर के पवित्र प्रेम के लिए अधिक जाने जाते हैं।

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यह बिहुला विषहरी की कथा प्राचीन भारत के सोडस जनपदों में से एक अंग देश ( वर्तमान बिहार के भागलपुर, मुंगेर जिला के आसपास का क्षेत्र) की राजधानी चंपा,( वर्तमान में भागलपुर जिले के नाथ नगर के चंपानगर )की है।

ऐसा माना जाता है कि महाभारत के समय में यहां के राजा कर्ण हुआ करते थे। सती बेहुला की कथा अंगिका भाषी क्षेत्र में एक गीत कला के रूप में मनाई जाती है। कथा के अनुसार चंपा नगरी में चंद्रधर सौदागर नामक एक धनी  वैश्य था।

वह परम शिव भक्त था। किंतु मां मनासा देवी से उसका बड़ा विरोध था। इसी विरोध के कारण मनसा देवी ने चंद्रधर के 6 पुत्रों को विषधर नागों से  कट बा कर  मरवा दिया था। सातवें पुत्र लक्ष्मी चंद्र का विवाह उज्जैन के धार्मिक साधु की परम सुंदरी साध्वी कन्या, बेहुला के साथ हुई थी।

लक्ष्मी चंद्र की कुंडली देखकर ज्योतिशों ने भविष्यवाणी की थी की प्रथम रात्रि में की सांप के काटने से इसकी मृत्यु हो जाएगी। तब राजा चंद्र धर ने लोहे का ऐसा मजबूत घर बनवाया की, जिसमें वायु भी प्रवेश ना हो सके। मगर मां मनसा देवी ने भवन निर्माण करने वाले मजदूरों से छोटा सा छेद छोड़ देने के लिए कहा।

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विवाह रात्रि को तक्षक सांप ने लक्ष्मी चंद्र को दंस लिया और वह मर गया। सारे घर में कोहराम मच गया।  तब उनकी पत्नी बेहुला ने केले के पौधे की नाव बनवाई ,और पति के शव को लेकर उसमें बैठ गई। नदी की लहरें उस शव को बहाकर बहुत दूर तक ले गई।

बहुत दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया। जिससे उसका शरीर सूख गया था। लक्ष्मी चंद्र के शरीर से दुर्गंध आने लगी थी। उसके सारे शरीर में कीड़े पड़ गए थे। मात्र उसका कंकाल ही शेष रह गया था, मगर वह अपने पति को पुनः जिंदा करने पर तुली हुई थी।

उसके कठोर तप को देखकर सारे के सारे देवता समुदाय द्रवित हो गए। मां मनसा भी द्रवित हो गईं। उन्होंने लक्ष्मी चंद्र को जीवनदान दिया। और इसके साथ ही मनसा बेहुला का नाम भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। यह कहानी इतनी हृदयस्पर्शी, मार्मिक, करुणामई है कि ,इस वक्त मेरे बदन के सारे रोंगटे खड़े हो गए।

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