अखण्डमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
अखण्डमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम ।
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
तीय संस्कृति में गुरु का स्थान सर्वोच्च
गुरु शब्द का अभिप्राय न केवल अध्ययन, अध्यापन मात्र है। अपितु छात्र अध्ययन के पाश्चात्य परिष्कृत स्वरूप देश, समाज के सामने उपस्थित होता है, वह गुरु स्वरूप में होता है।छात्र के व्यक्तित्व से गुरु का व्यक्तित्व जाना जाता है।छात्र गुरु का दर्पण माना जाता है। और गुरु समाज का दर्पण होता है।जिसक द्वारा छात्र समाज का अवलोकन करते हैं।
अतः गुरु के विषय में विद्वान कहते है कि—–
गुरु शब्द का अर्थ है—
गु—शब्द तो अंधकार है.
“अध्यापक देश और समाज के भाग्य निर्णायक होते हैं”
गु—शब्द तो अंधकार है.
रु–शब्द उसका निरोधक है.
गुरु शिष्य का उपकार कर्ता और सतपथ प्रदर्शक होता है।गुरु शब्द का पर्याय शिक्षक अध्यापक शब्द दोनों है।
इसका अर्थ है—-
इसका अर्थ है—-
शिक्षक—
शि—-शिष्ट
क्ष—-क्षमाशील
क—-कर्तव्यनिष्ठ
अध्यापक-
अ—अध्ययनशील
ध्या—ध्यानशील
प—-पापभीरु
क—कर्मनिष्ठ
अंग्रेजी भाषा में—-teacher
T——tactful,trained in mathodology
E—- enthusiasm, entire
A—-attentive, alert
C—character
H—–honesty
E—-enthusiasm, eligible, Effective
R——respectful, reasearved
शिक्षक ही राष्ट्र निर्माता भाविकाल निर्णायक होते हैं...
कहा जाता है कि —
“यदि किसी राष्ट्र का अध्यापक third class के होंगे तो वह राष्ट्र भी third class का होगा ,लेकिन शिक्षक प्रथम श्रेणी का होगा, तभी राष्ट्र प्रथम श्रेणी का होगा।
“जाका गुरु ही अंधरा चेला खरा निरंध ।
अंधा अंधे डेलिया दोनों कूप परन्ध ।।
गुरु का महत्व प्राचीन साहित्य में प्रत्येक जगह देखी जाती है।गुरु अपने आदर्श के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं जैसे कि—
“यदि किसी राष्ट्र का अध्यापक third class के होंगे तो वह राष्ट्र भी third class का होगा ,लेकिन शिक्षक प्रथम श्रेणी का होगा, तभी राष्ट्र प्रथम श्रेणी का होगा।
“जाका गुरु ही अंधरा चेला खरा निरंध ।
अंधा अंधे डेलिया दोनों कूप परन्ध ।।
गुरु का महत्व प्राचीन साहित्य में प्रत्येक जगह देखी जाती है।गुरु अपने आदर्श के कारण देवरूप में पूजे जाते हैं जैसे कि—
“आचार्यदेवो भव”।।
0 Response to " अखण्डमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ।।"
Post a Comment