100 देशों की लिस्ट में भी शामिल नहीं है भारत : मानव विकास सूचकांक
वर्ष 2020 के मानव विकास सूचकांक में भारत पिछड़ता नजर आ रहा है। इसमें शामिल 189 देशों में भारत 131वें स्थान पर है, जो पिछले वर्ष यानि 2019 में 129वां था। यह सूचकांक किसी देश में स्वास्थ्य शिक्षा और जीवन स्तर का पैमाना है।
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री ने की थी शुरुआत
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब अल हक ने मानव विकास सूचकांक बनाया था। यह इंडेक्स अर्थशास्त्री डॉ. अमर्त्य सेन की मानवीय क्षमता की अवधारणा पर आधारित है। सेन का मानना था कि क्या लोग अपने जीवन में बुनियादी चीजों, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य और समुचित जीवन स्तर को पाने में सक्षम हैं।रोटी, कपड़ा और मकान के अलावा शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ हवा, अच्छी सड़कें, सूचना का अधिकार, रोजगार आदि जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं। जिस देश में प्रत्येक नागरिक को इन सभी सुविधाओं का लाभ मिलता है, जाहिर है वह देश उन्नत होगा।
इतना कमजोर क्यों है भारत का यह सूचकांक
अब सवाल यह है कि दुनिया में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश भारत का मानव विकास सूचकांक इतना कमजोर क्यों है कि वह सौ देशों में भी शामिल नहीं है? सार्वभौमिक सत्य है कि जिस देश की शिक्षा-स्वास्थ्य की स्थिति बेहतर होती है, वहां लोगों की कार्यक्षमता भी ज्यादा होती है।भारत की आधी आबादी से ज्यादा तो ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है, उसको पर्याप्त मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। अब सवाल है कि ऐसा क्या किया जाए कि देश के हर नागरिक को हर सुविधा उपलब्ध हो और मानव विकास सूचकांक में भी हम बेहतर पायदान पर आ सकें। यह इतना आसान नहीं है। इसके लिए मार्केट इकोनॉमी का मॉडल बदलना पड़ेगा। इसके अलावा शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवाओं में सार्वजनिक निवेश में भारी वृद्धि करनी होगी।
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