यादों के झरोखे से -"मेरा साया" : साधना और सुनील दत्त के बेहतरीन अभिनय, सदाबहार गीत और बहुत ही अच्छे संगीत की वजह से यह फिल्म आज भी दर्शनीय और यादगार है, फिल्म का गाना 'झुमका गिरा रे' इतना प्रसिद्ध हुआ की बरेली के NH-24 पर 20 फिट ऊंचा एक विशालकाय झुमका स्थापित किया गया था
मनोरंजन
साधना और सुनील दत्त की फिल्म "मेरा साया" राज खोसला के निर्देशन में बना एक कोर्ट रूम ड्रामा है।
साधना और सुनील दत्त के बेहतरीन अभिनय, सदाबहार गीत और बहुत ही अच्छे संगीत ने इस फिल्म को आज तक एक दर्शनीय और यादगार फिल्म बनाए रखा है। कभी गुरु दत्त के सहायक रहे राज खोसला ने 1950 से 1980 के दशक में कई यादगार फिल्मों का निर्देशन किया, जिनमें मिलाप, सीआईडी, काला पानी, बंबई का बाबू, वह कौन थी, दो बदन, अनीता, मेरा गांव मेरा देश, मैं तुलसी तेरे आंगन की, दोस्ताना, सनी, चिराग, कच्चे धागे, दो रास्ते, नहले पर दहला, दो प्रेमी, तेरी मांग सितारों से भर दूं , मेरा दोस्त मेरा दुश्मन आदि फिल्में प्रमुख हैं।
राज खोसला ने मराठी फिल्म पथलाग का रीमेक मेरा साया नाम से बनाया था। 'एक मुसाफिर एक हसीना' और 'वो कौन थी' के बाद अभिनेत्री साधना के साथ राज खोसला की यह तीसरी फिल्म थी। राज खोसला के बेहतरीन निर्देशन में बनी इस फिल्म ने फिल्मफेयर बेस्ट साउंड का अवार्ड भी जीता था। राज खोसला को अपनी फिल्मों में महिलाओं को दमदार भूमिकाएं देने के लिए भी जाना जाता है।
इस फिल्म की सफलता मे इसके गीत संगीत का बहुत बड़ा योगदान है। संगीतकार मदन मोहन की बनाई धुनों ने फिल्म की लोकप्रियता बढ़ाने मे योगदान दिया। 1924 में बगदाद में जन्मे मदन मोहन के पिता ब्रिटिश सर्विसेस में अकाउंटेंट जनरल थे। मदन मोहन ने पढ़ाई के बाद 2 साल तक ब्रिटिश फौज में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद पर कार्य भी किया था। बाद में वे ऑल इंडिया रेडियो से जुड़े और फिल्म 'दो भाई' मे एसडी बर्मन के असिस्टेंट के रूप में कार्य करके फिल्म इंडस्ट्री में दस्तक दी।
अदालत, अनपढ़, दुल्हन एक रात की, दस्तक, हंसते जख्म, हीर रांझा, महाराजा और मौसम जैसी हिट फिल्मों में मदन मोहन ने सदाबहार संगीत दिया। लता मंगेशकर ने उन्हें "गजलों का शहजादा" नाम दिया था।
सिमटी सी शरमाई सी..., जरूरत है जरूरत है.... , कौन आया मेरे मन के द्वारे ...., तुम बिन जीवन कैसा जीवन...., हमसे आया न गया...., कर चले हम फिदा...., होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा..., रस्मे उल्फत को निभाएं तो निभाए कैसे..... जैसी सदाबहार धुने उन्होंने बनाई है। उनकी 11 धुनों को जो कभी इस्तेमाल नहीं की गई थी, का उपयोग फिल्म "वीर -जारा" में उनके बेटे संजीव कोहली ने किया और वीर- जारा फिल्म को मदन मोहन के संगीत से अपार लोकप्रियता हासिल हुई।
किसी थ्रिलर उपन्यास जैसी यह फिल्म शुरु से ही दर्शकों को कहानी से कनेक्ट कर लेती है। फिल्म की पटकथा जीआर कामथ ने लिखी है और संवाद अख्तर -उल -इमान के हैं। फिल्म के गीतकार राजा मेहंदी अली खान हैं।
अपने पाठकों को ये बता दूं की पहली बार इस फिल्म को देख रहा दर्शक जब अंत तक पहुंचता है, तभी उसकी उन जिज्ञासाओं का समाधान हो पाता है जो फिल्म के उस दृश्य से उसके मन में आती है,
जब इंस्पेक्टर दलजीत एक डकैत सायना की फोटो दिखाकर ठाकुर राकेश सिंह से कहता है कि ये गिरफ्तार दस्यु सुंदरी अपने आपको आपकी बीवी गीता बता रही है। राकेश सिंह यह बात मानने से इंकार कर देता है, क्योंकि वह जानता है कि उसकी बीवी गीता ने उसकी बाहों मे दम तोड़ा था। फिल्म की कहानी अनोखी है, जिसकी क्लाइमैक्स अप्रत्याशित है।
पति - पत्नी के सच्चे प्रेम को यह फिल्म दर्शाती है। साधना और सुनील दत्त की केमिस्ट्री इस फिल्म में अद्भुत है।
सुनील दत्त एक सुदर्शन पति की भूमिका में हैं। उन्होंने अपना अभिनय कौशल प्रदर्शित किया है। कोर्ट के कई दृश्यों में उन्होंने अपने अभिनय से एक अनोखा प्रभाव उत्पन्न किया है। एक दुखी, उदास पति ठाकुर राकेश सिंह की भूमिका उन्होंने जबरदस्त तरीके से निभाई है, जो अपनी पत्नी से बेइंतेहा मोहब्बत करता है और जिसकी युवा पत्नी उसकी बाहों में अपने प्राण त्याग देती है।
झुमका गिरा रे बरेली के बाजार में' फिल्म का यह गीत जो दशकों बाद भी लोगो की जुबान पर आज भी कायम है और जिसने बरेली और बरेली के बाज़ार को पूरे देश मे लोकप्रिय कर दिया था। फिल्म के 50 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में साधना के सम्मान में यूपी के बरेली के राष्ट्रीय राजमार्ग 24 पर पारसा खेड़ा चौराहे पर 20 फिट ऊंचा एक विशालकाय झुमका स्थापित किया गया था।
फिल्म में के. एन. सिंह, मुकरी, धमाल और प्रेम चोपड़ा ने भी प्रभावी भूमिकाएं निभाईं है। कुल मिलाकर कहें तो
साधना के अनुपम सौंदर्य और उत्कृष्ट अभिनय ने इस पूरी फिल्म को साधनामय बना दिया था।
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