सिर्फ खनिज संपदाओं से ही परिपूर्ण नहीं है झारखंड की धरती, झारखंड की फिजाओं में आज भी जिंदा हैं हीर राँझा, लैला मजनू जैसी कोयल - कारो, छैला - बिंदी समेत ये अमर प्रेम कहानियां


दुमका : कुछ राज्य अपनी खनिज संपदा से जानी जाती हैं, कुछ अपनी प्रकृती के लिए तो कुछ अन्य के लिए। 

सिर्फ खनिज संपदाओं से ही परिपूर्ण नहीं है  झारखंड की धरती, झारखंड की फिजाओं में आज भी जिंदा हैं हीर राँझा, लैला मजनू जैसी कोयल - कारो, छैला - बिंदी समेत ये अमर प्रेम कहानियां



जानें झारखंड की कुछ अमर प्रेम कहानियो के बारे में, जो आज भी यहां की फिज़ाओं में सदियों से गूंज रही हैं। इन्हें लोग आज भी नहीं भूले हैं। ये कहानियां झारखंड के नेतरहाट के मैगनोलिया प्वाइंट से लेकर दशम फॉल और डालटनगंज के कोयल और कारो एवम पंचघाघ से जुड़ी हुई हैं।

मैगनोलीया पॉइंट :- बात बहुत पहले की है, जब नेतरहाट के एक चरवाहे को अंग्रेज अधिकारी की बेटी मैगनोलिया से प्यार हाे गया था। चरवाहा शाम को नेतरहाट के सनसेट प्वाइंट पर अपने मवेशियों को चराने पहुंचता था और वहां वह बांसुरी बजाता था। एक बार गांव में छुट्टी बिताने अंग्रेज पदाधिकारी अपने परिवार के साथ पहुंचा। उसकी बेटी चरवाहे की बांसुरी सुन उसकी दीवानी हो गई। रोज की मुलाकात प्यार में बदल गई। 

एक दिन इसकी भनक मैगनोलिया के पिता को लग गई। गुस्साए अंग्रेज ने चरवाहे की हत्या करवा दी। यह सुन मैगनोलिया ने भी सनसेट प्वाइंट से अपने घोड़े के साथ छलांग लगा दी। आज भी मैगनोलिया प्वाइंट उनके प्रेम का गवाह है।

छैला सन्दू और बिन्दी  :-  तमाड़ के बागुरा पीड़ी गांव का छैला संदू और पाक सकम गांव में रहनेवाली बिंदी की प्रेम कहानी भी अदभूत है। छैला सिंदू को प्रेमिका से मिलने जाने के लिए दशम फॉल पार करना पड़ता था। वह रोज हाथ में बांसुरी, गले में मांदर और कंधे पर मुर्गा लेकर प्रेमिका से मिलने जाता था। दशम फॉल को वहां लटकती लताओं के सहारे पार करता था। गांव के लोगों को जब इसका पता चला, तो दोनों को जुदा करने की योजना बनी। ग्रामीणों ने उस लता को आधा काट दिया, जिसके सहारे छैला दशम फॉल पार करता था। जैसे ही छैला फॉल पार करने लगा, लता टूट गई और वह फॉल में समा गया।

पांच बहनों की प्रेम कहानी :- पंचघाघ जलप्रपात से जुड़ी प्रेम कहानी कौतूहल का विषय है। लोगों का मानना है कि पंचघाघ जलप्रपात से बहनेवाली पांच धाराएं पांच बहनों के अंतिम निश्चय का प्रतीक है। यह निश्चय साथ जीवन जीने का नहीं, बल्कि एक साथ जान देने का है। माना जाता है कि खूंटी गांव में पांच बहनें रहती थीं, जिन्हें एक ही पुरुष से प्रेम हो गया था। सगी बहनों को जब उनके साथ हो रहे विश्वासघात का पता चला, तब तक देर हो चुकी थी। असफल प्रेम के कारण पांचों बहनों ने नदी में कूद कर अपनी जान दे दी। माना जाता है कि इसके बाद से ही जलप्रपात की धाराएं पांच हिस्सों में बंट गई और आज भी ये अलग-अलग ही हैं।

बैजल बाबा :- गोड्डा जिले के सुंदरपहाड़ी प्रखंड का गांव कल्हाझोर वीर बैजल सोरेन के कारण जाना जाता है। बैजल बाबा सुंदरपहाड़ी में मवेशी चराते हुए बांसुरी बजाते थे। एक बार साहूकार ने गांव के मवेशियों को बंधक बना लिया। बैजल सोरेन ने साहूकार का सिर काट कर पहाड़ पर टांग दिया। अंग्रेजों ने बैजल को गिरफ्तार कर फांसी की सजा सुनाई। फांसी से पहले उसने बांसुरी बजा कर सुनाया, जिसे सुन समय का पता नहीं चला और फांसी का निर्धारित समय बीत गया। बांसुरी सुन अंग्रेज अफसर की बेटी को उससे प्रेम हो गया। बाद में वह बैजल को अपने साथ इंग्लैंड ले गई।

कोयल और कारो :- डालटेनगंज और आस-पास के इलाकों में कोयल और कारो की प्रेम कहानी आज भी सुनी और सुनाई जाती है। कोयल उस समय के मुंडा राजा की बेटी थी। उस समय नाग सांप को लेकर लोग काफी भयभीत रहते थे। कोयल अक्सर पिता से छुप कर नाग की तलाश में जंगल में जाती थी। एक दिन उसे जंगल में नागों के देवता कारो मिलते हैं। दोनों में प्रेम हो जाता है और अक्सर दोनों मिलने लगते हैं। मुंडा राजा को जब इसका पता चला, तो उन्होंने कोयल को जंगल से दूर कर दिया। बाद में ईश्वरीय शक्ति से कोयल नदी में बदल जाती है और यह प्रेम कहानी अमर हो जाती है।

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