हिमाचल में पेड़ पर लगने वाली कचनार (कराली) आजकल बनी हुई है लोगों की पसन्दीदा सब्जी, कई औषधियों गुणों से भरपूर होती है कचनार की सब्जी
देवभूमि हिमाचल में कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जिनका इस्तेमाल न केवल दवाईयों के लिए बल्कि सब्जी के लिए भी होता है। एक ऐसी ही सीजन में खाने वाली सब्जी है कचनार या कराली, जो मार्च -अप्रैल में पेड़ पर लगती है।
पेड़ों के टहनियों में लगती हैं कचनार
कचनार पेड़ की टहनियों में लगती है। कचनार की लकड़ी इंधन के काम आती है, जबकि पत्तियां पशुओं के पसन्दीदा चारे के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। जब पेड़ की टहनियों में कलियां व फूल लगते हैं तो वह सब्जी बनाने के काम आते हैं।
अचार बनाने के काम भी आती है कचनार
कराली के फूल की कई प्रकार की सब्जियां लोग बनाते हैं। इसकी तासीर ठंडी होती है। कचनार का प्रयोग आचार बनाने में भी किया जाता है।
रोगों के उपचार में भी कारगर है कचनार
कचनार की खूबियों की वजह से इसके पेड़ पर पहाड़ी गाने भी बनाए गए हैं।
एक गाना तो बहुत ही मशहूर है "बाट बमनुआ ओ राखा फुलियाँ कराली"। सफ़ेद, पीले, लाल रंग के फूल, गुलाबी रंग की धारियों के साथ बेहद खूबसूरत दिखाई देते हैं। आजकल आप यदि हिमाचल आ रहे हैं तो खेतों में आपको फूल खिले हुए कचनार के पेड़ दिख जाएंगे।
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