नवरात्र केवल उपवास और अनुष्ठान तक ही सीमित नहीं है, इसकी अध्यात्मिक मान्यताएं पूर्णतः वैज्ञानिक आधार पर टिकी हैं
व्रत त्यौहार
नवरात्र, उपवास और अनुष्ठान की आध्यात्मिक मान्यताएं पूर्णतः वैज्ञानिक आधार पर टिकी हुई हैं।
इसलिए इन्हें शाश्वत और सनातन की श्रेणी में रखा जाता है। मां दुर्गा के नौ रूपों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए नवरात्रों में किए जाने वाले अनुष्ठान और उपवास आदि पूर्णतः वैज्ञानिक धरातल पर खड़े हैं।
चैत्र नवरात्र
उपवास प्राकृतिक चिकित्सा में रोग उपचार की एक विधि के रूप में मान्यता प्राप्त है। एक नवरात्र शरद समाप्ति और ग्रीष्म आगमन के संधिकाल पर आता है, जिसका समापन रामनवमी के साथ होता है। इन्हें चैत्र नवरात्र कहा जाता है।
शारदीय नवरात्र
दूसरे नवरात्र ग्रीष्म समाप्ति और शरद के आरंभ के संधिकाल पर मनाए जाते हैं, जिसका समापन रामनवमी तथा दशहरा के साथ होता है। इन्हें शारदीय नवरात्र कहा जाता है।
दोनों ही नवरात्र का संबंध ऋतु परिवर्तन से
दोनों ही नवरात्रों का संबंध ऋतु परिवर्तन से है। सूक्ष्मजीव वैज्ञानिकों का मानना है कि ऋतु परिवर्तन के संधिकाल में रोगजनित सूक्ष्मजीवों, जीवाणु और विषाणु वृद्धि तीव्रता से होती है तथा इस काल में खाने की वस्तुओं, भोजन आदि में सूक्ष्मजीवों द्वारा किए जाने वाले संक्रमण की संभावनाएं अधिक रहती हैं। ऐसा दूषित भोजन, रोगों को निमंत्रण देता है। यदि इस समय पर हम अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर, कुछ दिनों तक शुद्धता, पवित्रता और यथासंभव उपवास का पालन करते हैं, तो नि:संदेह हमारा शरीर स्वस्थ और निरोगी रह सकता है।
इसीलिए भी करते हैं नवरात्र
नवरात्रों के करीब नई अनाज की फसल पक कर तैयार हो रही होती है। नया अनाज, धरती की ऊष्मा के कारण इस समय अधिक ऊष्मीय होता है। ऐसे अनाज का सेवन स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम नहीं माना जाता है। इस ऊर्जा से भरपूर अनाज को पचाना सरल नहीं होता। इसलिए नौ दिन उपवास रखकर जठराग्नि को अधिक तेज किया जाता है। ताकि पाचन-तंत्र को मजबूत बनाया जा सके।
मनुष्य का शरीर पंचतत्व से निर्मित
नवम दिवसीय नवरात्र शक्ति की परिचायक हैं। मनुष्य शरीर पंचतत्व से निर्मित एक प्राकृतिक इकाई है, यह पांच तत्व भी शक्ति के भंडार हैं। जल में गतिज ऊर्जा, अग्नि में उष्मीय ऊर्जा, नभ में शाब्दिक ऊर्जा, वायु में गतिज ऊर्जा तथा मृदा में भूगर्भीय ऊर्जा का अंश निहित है। ऊर्जाओं का यह पुंज प्रकृति में उत्पादक और उपभोक्ता के बीच चक्कर लगाता रहता है।
आदि शक्ति के तीन स्वरूप
नवरात्र नारी शक्ति की पूजा और वंदना का उत्सव है। आदि शक्ति के तीन स्वरूपों ज्ञान शक्ति, इच्छा शक्ति और क्रिया शक्ति के उपक्रमों से प्रकृति के सतो, रज और तम, तीन गुणों की उत्पत्ति होती है। संपूर्ण जैविक सृष्टि की जन्मदात्री नारी ही है। हमारे सामाजिक ताने-बाने में नारी केंद्र बिंदु है।
इन सभी का उत्तर विज्ञान में निहित है
यह भी विचारणीय प्रश्न है, जिसका उत्तर विज्ञान में ही निहित है। अध्ययन बताते हैं कि भाव, रस, भक्ति, रत्न, अनाज, रंग, निधियां सभी नौ हैं। इस प्रकार नौ की संख्या का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व है। पृथ्वी एक वृत्त की भांति है और सम्पूर्ण वृत्त 360 अंश और अर्धवृत्त 180 अंश का होता है। नक्षत्र 27 हैं, हरेक के चार चरण हैं, तो कुल चरण 108 होते हैं। सभी 9 के गुणांक है। इसलिए नौ दिनों के नवरात्र मनाने की परंपरा हमारे ऋषियों ने ब्रह्मांड के अध्ययन द्वारा ही प्रतिपादित की है।
मातृ शक्ति के नौ रूप
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री है, जिनकी नवरात्रों के दौरान पूजा-अर्चना करके उस प्राकृतिक शक्ति का आह्वान किया जाता है। जो सृष्टि को जन्म देती है, उनका पालन-पोषण करती है और समय आने पर उनका संहार भी कर सकती है, ताकि सृष्टि हमेशा चलायमान और गतिमान रह सके।
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