राम समरसता के सबसे बड़े उपासक तो फिर वैमनस्यता क्यों? राम भारत की आत्मा है,अस्मिता है फिर भी विरोध क्यों?
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के महज तीन दिन ही बचे हैं। सभी जाति, धर्म ,संप्रदाय,पंथ के कुछ चुनिंदा जो समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं, सभी आमंत्रित हैं। यदि कोई आमंत्रित नहीं हैं तो यह मात्र सुरक्षा का कारण है और कुछ भी नहीं।
राम समरसता के सबसे बड़े उपासक हैं अतः यहां वैमनस्यता का तो कोई सवाल ही नहीं उठता है। राम तो भारत की अस्मिता और आस्था का प्रश्न है। इसलिए तथाकथित महज़ राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति हेतु धर्मनिरपेक्ष प्राणियों का महज़ एक व्यक्ति विशेष का विरोध करने के लिए मार्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम का विरोध क्यों?
बहुतों को कुछ चित्रित कर कहते सुना गया कि स्कूल,अस्पताल जरूरी है या मंदिर? बिल्कुल ही अंतस् प्रश्न है।इस संबंध में उन्हें यही प्रश्न अन्य धर्मावलंबियों के लिए भी उठाए चाहिए। सिर्फ हिन्दूत्व पर ही सवाल क्यों?
ध्यान रहे मंदिर किसी सरकारी पैसे से नहीं बन रहा है जो सवाल करे। मंदिर रामभक्तों के चंदा से बन रहा है। मुझे अब भी याद है कि जब हमलोग चंदा इकट्ठा करने घर घर जाते थे तो लोगों के 10-10 रुपए भी मिले तो लेकर रसीदें दिया करते थे।
मुझे एक वाकया याद है जब किसी ने गर्भ में पल रहे नवजात शिशु जो अभी आया भी नहीं है के लिए चंदा की रसीद कटाई थी। राम मंदिर ऐसे ही मां के पैसे से बन रहा है। चंदा 900 करोड़ का टारगेट था पर श्रद्धा का सैलाब देखिए जारी किए गए आंकड़ों के आधार पर लगभग 3100 करोड़ से अधिक हो गया है।
यह मंदिर कोई मोदी जी नहीं बना रहे बल्कि विश्व हिन्दू परिषद बना रहा है मोदी जी को एक प्रधानमंत्री होने के नाते निमंत्रण दिया गया है। अन्य लोगों को भी मिला लेकिन एक व्यक्ति विशेष के विरोध के लिए वे खुद नहीं आ रहे हैं।
सम्पूर्ण बहुसंख्यक समुदाय सहित श्री राम को आहत करना जायज है क्या? विरोधियों ने तो पहले दुष्प्रचार किया कि हमें निमंत्रण ही न मिला परन्तु जब सभी जान गए तो यह अस्वाभाविक अफवाह मंदिर क्यों स्कूल अस्पताल क्यों नहीं फैलाना शुरू किया? आश्चर्य है।
मैं कोई राजनीतिक कार्यकर्ता नहीं हूं फिर भी इस बात का एलान करता हूं कि इसबार भी राम मंदिर का विरोध करने वाले की सुनिश्चित हार प्रत्यक्ष रूप से देख रहा हूं भारत की बहुसंख्यक आबादी को आहत पहूंचाकर शायद बहुत बड़ी भूल की है।
यह तो वही बात हुई कि आ बैल मुझे मार। मैं समझता हूं कि क्या जरूरत है विरोध करने की? मतलब मेरी तो निष्पक्ष राय यही है कि हम सत्ता हथियाने का मौका ही क्यों दें? राम तो हमारे आदर्श हैं, आराध्य देव हैं, सबके हैं तो फिर आप सब भी बढ़ चढ़कर हिस्सा क्यों न लें?
राम भारत की आत्मा है चाहे वो वर्तमान तथाकथित किसी भी जाति, धर्म, मजहब से बंधे हों पर हमारे पुर्वज हमारे आराध्य श्रीराम हीं हैं। परंतु पिछले शताब्दी वर्षों पूर्व से ही आक्रांताओं ने भारत की आत्मा पर चोट किया है जबरन धर्मांतरण किया है।
विशेषकर हिन्दूत्व को दफन करने का प्रयास किया है, दरारें बढ़तीं गईं हैं।इतना अवश्य कहूंगा आजादी के बाद पिछले कई सालों से चल रही सरकारों ने भी अपनी राजनीतिक गतिविधियों को संचालित करने हेतु इन खाइयों को पाटने की बजाय बांटने या बढ़ाने का काम किया है।
तुष्टिकरण बस राजधर्म बन गया और वोट बैंक की राजनीति में आस्था परवान चढ़ता गया। हम लड़ते रहे वे बढ़ते रहे। हमारी सनातन सुसंस्कृति की समृद्धि धूमिल होती गई जिसके चपेट में हमारे आराध्य श्रीराम भी आ गए।
यह बताने में कोई गुरेज नहीं है कि पिछले वर्षों से चली आ रही सरकारों ने देशभर की अधिकतर सम्पूर्ण आर्थिक, व्यावसायिक, शैक्षणिक, व्यावहारिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, धार्मिक, नैतिक व्यवस्था या संस्था को अपने अधीनस्थ करते हुए अपने राजनीतिक स्वार्थ पूर्ति का साधन बना दिया जिसके कारण सम्पूर्ण सामाजिक समरसता छिन्न-भिन्न हो गई।
यहां तक कि इसके चपेट में महान सनातन परंपरा के रक्षार्थ समर्पित धर्माचार्य अर्थात चारों पीठ के प्रथम पूज्य शंकराचार्य भी आ गए। जिसका असर आज हम स्वयं महसूस कर रहे हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चारों पीठाधीश्वर का इसके विरोध में मुखर होना इस बात का परिचायक है कि लौ में असर अब भी बांकी है सिर्फ दिया बुझने के पूर्व भकभकाने का दृश्य है वरना अपने आराध्य श्रीराम के लिए प्रश्नचिन्ह नहीं खड़ा किया गया होता।
लेकिन कोई यशस्वी व्यक्तित्व भारत को मिल गया है जो भारत को राममय बना रहा है। पुनः आध्यात्मिक पुरानी संस्कृति वापस लौट रही है लेकिन आधुनिकता के साथ। हम सब फिर से एक होंगे। हर जाति धर्म मजहब का भावनात्मक लगाव होगा और हम एक दूसरे के सहयोगी होंगे। भारत परम वैभव को प्राप्त करेगा।
हां याद रहे इसबार भारत सोने की चिड़िया नहीं बल्कि सोने का शेर बनके उभरेगा। पहले कमजोर सोने की चिड़िया थी इसलिए सबों ने लूटा जब शेर बनेगा तो कोई आंखें दिखाने की जुर्रत ना करेगा।
जय हिन्द! जय भारत!
(लेखनी एक शिक्षाविद की है और यह एक निजी उद्गार है। बस यही कहता हूं कि मेरी झोपड़ी के भाग खुल जाएंगे राम आएंगे।)
राम भारत की आत्मा है,
फिर राम लहर क्यों है?
दुबके हैं सब अपने घरों में,
हम पर यह कहर क्यों है?
राम लहर है देश में भैया,
शीत लहर का असर क्यों है?
हम तो चले हैं सबको जगाने, अयोध्या राह दिखाने को;
गर अब भी न हम जगे,
फिर ये शहर क्यों है?
राम भारत की आत्मा है,
जाति धर्म मजहब से उपर;
फिर भी अपने आराध्य पर, राजनीतिक नजर क्यों है?
आ रहे हैं राम हमारे,
टूटे टाट से अब ठाठ में,
गर कोई एतराज तुम्हें तो,
तुम्हारा अपना घर क्यों है?
समरसता का भाव जगाता,
मार्यादा पुरूषोत्तम है;
गर इनका भी विरोध हुआ तो,
फिर राम लहर क्यों है?
स्वरचित
सुबोध झा
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