झारखंड ला सकता है केंद्रीय कृषि बिल के खिलाफ प्रस्ताव


Sahibganj News: अब राज्य सरकार ने झारखंड विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर केंद्र सरकार को कई मसलों पर चुनौती देने का मन बना लिया है। जीएसटी (GST) के बकाया की राशि समय पर न मिलने और राज्य सरकार को विश्वास में लिए बगैर केंद्र द्वारा डीवीसी की बकाया राशि झारखंड के खाते से वसूल लेने के बाद से यह खटास और बढ़ी है।
झारखंड ला सकता है केंद्रीय कृषि बिल के खिलाफ प्रस्ताव

पंजाब में भले ही केंद्र के कृषि बिल के खिलाफ और समानांतर लाए गए बिलों को राज्यपाल के साथ किसानों ने भी नामंजूर कर दिया हो, लेकिन झारखंड में भी पंजाब और राजस्थान की तर्ज पर केंद्र के कृषि बिल को निष्प्रभावी बनाने की सुगबुगाहट तेज है।

माना जा रहा है कि दुमका-बेरमो उपचुनाव के बाद विशेष सत्र का आयोजन कर सरकार यहां भी पंजाब और राजस्थान जैसे नए बिल ला सकती है। सरकार के सहयोगी दल कांग्रेस ने इसके स्पष्ट संकेत दिए हैं।

उधर, आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड का मामला भी गर्म है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने खुद विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर सरना धर्म कोड के लिए प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजने की बात कही है। ऐसे में विशेष सत्र के बहाने राजनीतिक हित साधने की सत्ताधारी दल की तैयारी पुख्ता है।

सरना धर्म कोड सत्ताधारी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का एजेंडा है, तो केंद्रीय कृषि कानून को निष्प्रभावी करने की पहल करना सहयोगी दल कांग्रेस का। विशेष सत्र के दौरान दोनों सत्ताधारी दल गेंद केंद्र के पाले में डालने के साथ-साथ अपनी-अपनी पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाने की कोशिश में हैं।

झामुमो ने सरकार पर बनाया था दबाव हाल ही में झामुमो की केंद्रीय समिति ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर सरना धर्म कोड को लागू करने को लेकर दबाव बनाते हुए विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी। इस समिति में एक दर्जन विधायक और पूर्व विधायक शामिल थे।

पार्टी की केंद्रीय समिति की मांग के बाद मुख्यमंत्री ने अधिकृत तौर पर विशेष सत्र बुलाने की घोषणा कर दी है। संवैधानिक अड़चनों के बावजूद खेला जा रहा दांव कृषि बिल को निष्प्रभावी कर नए बिल लाने की बात हो यो सरना धर्म कोड को लागू करने का मामला, इस राह में संवैधानिक अड़चनें हैं।

विधानसभा में प्रस्ताव पारित होने के बाद भी इसे रांची से दिल्ली तक कई पायदान से गुजरना होगा। राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के बिना ऐसे कानून लागू भी नहीं किए जा सकते। झामुमो इससे अनजान नहीं है। फिर भी राजनीतिक कसरत चल रही है।

सरना कार्ड का प्रस्ताव पास कर आदिवासी समाज के हितों की रक्षा करने का संदेश देने की कोशिश की जा रही है। वहीं कृषि कानून के मुद्दे पर केंद्र को घेरने की तैयारी है।

इस कानून को निष्प्रभावी करना कांग्रेस का एजेंडा है, जिस पर अमल के लिए कांग्रेस आलाकमान की ओर से भी दबाव बनाया गया है। कृषि मंत्री बादल कांग्रेस कोटे से मंत्री हैं। उन्होंने भी पंजाब के ड्राफ्ट का अध्ययन करने की बात कही है।

झारखंड प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने पंजाब सरकार के कदम को अनुकरणीय बताते हुए इसे राज्य में अपनाने की बात कही है। हालांकि, अभी तक अधिकृत तौर पर केंद्रीय कृषि कानून के खिलाफ कानून बनाने को लेकर सरकार की ओर से घोषणा नहीं की गई है।

जीएसटी क्षतिपूर्ति के मद में भारत सरकार के स्तर से सुझाए गए फार्मूले को झारखंड सरकार ने खारिज कर दिया है। जीएसटी क्षतिपूर्ति का बकाया करीब बढ़कर तीन हजार करोड़ पहुंच गया है। इस वित्तीय वर्ष महज 318 करोड़ इस मद में अब तक मिले हैं।

वहीं, कोरोना संक्रमण काल के दौरान केंद्र सरकार के ऊर्जा मंत्रालय द्वारा दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) के बकाया की कटौती किस्तों में शुरू कर दी गई है। पहली किस्त के रूप में 1417 करोड़ रुपये राज्य सरकार के रिजर्व बैंक के खाते से काट लिए गए हैं। मुख्यमंत्री ने इस कटौती को मौजूदा दौर में नाजायज ठहराते हुए पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है।

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