जहां सरकार फेल होती है, वहीं से सिंडीकेट की शुरुआत होती है
Patna : जहां सरकार फेल होती है, वहीं से सिंडिकेट की शुरुआत होती है। सिंडिकेट फिर माफिया को पैदा करता है। माफिया अपना धंधा चमकाने के लिए तस्कर नियुक्त करता है। इसके बाद का काम खुद-ब-खुद हो जाता है।
बिहार में शराबबंदी को लेकर कुछ इसी तरह का अनुमान लगाया जा रहा है। इसके नतीजे भी दिख रहे हैं। जहरीली शराब का मातम है, मगर कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है। बिहार में शराबबंदी फेल, ऊपर से नीचे तक सब चुप हैं।
बिहार में शराबबंदी है। शराबबंदी की आज 5वीं सालगिरह है। जहरीली शराब से मौत है। 4 जिलों में मातम है। मद्य निषेध मंत्री चुप हैं। मंत्री सुनील कुमार खुद आईपीएस ऑफिसर रहे हैं। पटना से पंचायत तक शराब माफिया हैं। शराब की अवैध भट्ठियां हैं।
देसी से विदेशी तक शराब की होम डिलीवरी है। कानून को लागू करनेवाले माफिया से मिले हुए हैं। पैसे के दम पर शराब सिंडिकेट कानून की बोली लगाता है। सब कुछ पता रहते हुए, हर कोई मौन है। कड़े कानून भी हैं। बिहार के मुखिया नीतीश कुमार सबकुछ जानते हैं।
कड़ी कार्रवाई की बात करते हैं। कानून है। पुलिस है। जेल है। शराब है। शराब पीनेवाले हैं। शराब बेचने वाले हैं। लोगों की जान जा रही है। सरकार फेल है। कानून फेल है। माफिया को किसी का डर नहीं है। घूस लेने वाले हैं। घूस देनेवाले हैं।
शराब पकड़ी जाती है। शराब बेची जाती है। शराब के गोदाम हैं। शराब के रिटेलर हैं। शराब के सप्लायर हैं। उत्पाद विभाग है। पुलिस है। नाकेबंदी है। फिर भी सभी बेड़ों को पारकर शराब गांवों तक पहुंचता है।
शराबबंदी की सालगिरह के दिन 20 घरों में मातम बिहार में 1 अप्रैल 2016 से शराबबंदी लागू की गई थी। उस हिसाब से शराबबंदी की पांचवीं सालगिरह है। कहां तो इस नेक काम का जलसा होना चाहिए था। मगर बिहार में मातम पसरा है।
सरकार और उसके अधिकारियों के हाथ-पांव फूले हुए हैं। चार जिलों में 20 लोगों की जान चली गई, कई लोग अंधे हो गए। कई अस्पताल में भर्ती हैं।
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