सूरज जरा सा ढ़लने दो | स्वरचित कविता : एंजल भारद्वाज, साहिबगंज Sahibganj News Jan 9, 2022 Edit सूरज जरा सा ढ़लने दोस्वरचित कविता : एंजल भारद्वाजलगाओ ना पाबंदियां हम पर,हमें आजाद हवा में जीने दो।बचपन है अभी हमारा,थोड़ी गलतियां भी करने दो।शाम अभी हुआ नहीं है, सूरज जरा सा ढ़लने दो।अभी स्कूल से भैया आए नहीं,उन्हें भी तो आने दो। बच्चे खेल कर घर नहीं लौटे,उन्हें जरा सा लौटने दो। शाम अभी हुआ नहीं है,सूरज जरा सा ढ़लने दो।पापा दफ्तर से घर नहीं लौटे,उन्हें घर तो वापिस आने दो।दादी को बाजार से मेरे लिए,खिलौना भी तो लाने दो। शाम अभी हुआ नहीं है,सूरज जरा सा ढ़लने दो।अभी टीवी पर क्रिकेट नहीं आया,उसे भी तो आ जाने दो।छक्के और चौकों पर हमें,थोड़ा ताली तो बजाने दो।शाम अभी हुआ नहीं है,सूरज जरा सा ढ़लने दो।अभी मां के रसोई से, खुशबू जरा भी उठी नहीं।स्वादिष्ट भोजन और पकवानों का,सुगंध जरा तो आने दो। मां के हाथों से मेरे लिए,थोड़ा मैगी तो बनाने दो।पूजा आरती अभी हुई नहीं है,दादी को भजन थोड़ा गाने दो।लगाओ ना पाबंदियां हम पर,हमें आजाद हवा में जीने दो। शाम अभी हुआ नहीं है,सूरज जरा सा ढ़लने दो!.... निचे दबा कर 👇 शेयर करना ना भूले
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