बहाते हो तुम खून की धारा, करते हो बेहिसाब दंगे, अस्थियां विसर्जित करते हो फिर और कहते हो "नमामि गंगे" : आंचल गुप्ता की स्वरचित रचना


बहती हैं यहाँ नदियाँ कई
उन सबकी तुम सरताज हो।

पवित्रता का तब बोध हो,
हर-हर गंगे जब आवाज हो।।

बहाते हो तुम खून की धारा, करते हो बेहिसाब दंगे,  अस्थियां विसर्जित करते हो फिर और कहते हो "नमामि गंगे" : आंचल गुप्ता की स्वरचित रचना



जटाओं में तुझको धारण कर
बैठा गंगाधर कैलाश पर।

धुलने के लिए अपने पाप को
ए इंसान तू गंगा की तलाश कर।।

हिमालय से वो निकलती हैं 
मगध की धरती पर चलती हैं।
 
कूड़ा फेंक करते हो दूषित उसको
ये बातें हर पल खलती है।।

बहाते हो तुम खून की धारा,
करते हो बेहिसाब दंगे।

और कहते हो "नमामि गंगे"।

त्याग कर द्वेष-भावना को तुम,
जब सुधारोगे अपना चरित्र।

खुबसुरती में चार-चाँद लगेंगे,
जब होगी गंगा सच में पवित्र।

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