यादों के झरोखे से फिल्म 'गाइड' : दर्जनों पुरस्कार से सम्मानित इस फिल्म को टाइम पत्रिका ने "सर्वश्रेष्ठ बॉलीवुड क्लासिक्स" की सूची में नंबर 4 पर रखा है
देव साहब की सदाबहार फिल्म ''गाइड'' कई बार देख चुका हूँ।
इस फिल्म को में दो कारणों से देखता हूँ। पहली बात तो .इस फिल्म का क्लाइमेक्स है ..जिसमें एक गाइड, जो आम आदमी की तरह गलतियों का पुतला होता है, जो पर्यटकों को गाइड करने का काम करता है, लेकिन वो स्वयं अपने जीवन के उद्देश्य को लेकर मिसगाइड होता है।
किस प्रकार उसका चरित्र परिवर्तन होकर वो साधू बनता है और उसकी सच्चाई में वो देवीय शक्ति आ जाती है की सूखा अकालग्रस्त गांव में बरसात हो जाती है। दूसरा कारण यह की इस पूरी फिल्म को उदयपुर में फिल्माया गया, करीब 59 साल पहले। उस समय का शहर और झीलों की जो खूबसूरती थी, जो पहाड़ों पर हरीतिमा थी, वो आज कहीं खत्म हो गई है। शांत और छोटा सा नगर उदयपुर आज के समय में कोलाहल और चिल्ल्पॊ का केंद्र बनता जा रहा है। उदयपुर के पुराने शहर की खूबसूरती को देखने के लिए इस फिल्म को देखने से भी खुद को नहीं रोक पाता हूं।
इसके अलावा फिल्म तो बेमिसाल है ही, मेरी आल टाइम फेवरेट फिल्म है ये। फिल्मो का सामजिक जीवन में बहुत प्रभाव पड़ता है। जब नया दौर फिल्म आई थी, उसमें दिलीप साहब ने तांगे वाले शंकर नाम के पात्र की भूमिका निभाई थी, उसमे वे गले में रुमाल बांधे हुए और हाथों में भी रुमाल बांधे हुए नजर आए थे। तब उस जमाने में सभी तांगे वालोँ ने उनकी नक़ल उतारनी शुरू कर दी थी।
देव साहब जब गाइड फिल्म में राजू गाइड की भूमिका में दिखाई दिए तो उनकी तरह ही कानों में बाली और गले में रुमाल, माथे पर टोपी लगाए उदयपुर सहित सभी छोटे - बड़े शहरों के लोग गाइड नजर आने लगे।
ये फिल्म 1965 में प्रदर्शित हुई थी। एस डी बर्मन के सदाबहार गीतों से सजी और सबसे पहले दूरदर्शन पर प्रसारित मालगुडी डेज नामक सीरीज के प्रसिद्ध लेखक, आर के नारायण की पुस्तक पर आधारित ये फिल्म एक ऐसे युवा गाइड की कहानी है, जो एक बूढ़े व्यक्ति की युवा सुंदर विवाहित स्त्री से प्रेम कर बैठता है। तब नायिका भी गाती है, तोड़ के बंधन बांधी पायल, आज फिर जीने की तमन्ना है,
आज फिर मरने का इरादा है।
नायिका का पति बूढ़ा है, वास्तविक और सामाजिक जीवन में भी युवा स्त्री का बूढ़ा पति अपनी पत्नी का जीवन साथी कभी नही हो सकता। मेरे विचार से जोड़ी सदैव हम उम्र की होनी चाहिए। प्रेमचंद की निर्मला भी बूढ़े की ब्याहता होती है, इसीलिए वो अपने हमउम्र लड़के से मित्र की तरह बर्ताव करती है। खैर, फिल्म के अंत में नायक इस मतलब परस्त और फरेब भरी दुनियादारी से मोह त्याग कर एक गाँव में चला जाता है, जहाँ उसे सहज, सरल और सच्चे लोगों के बीच सत्य, मोक्ष और मानवीयता का बोध होता है। वो खुद को सत्यनिष्ठ साबित करने के लिए अपने प्राण त्याग देता है। बता दूं कि देव साहब की ये पहली रंगीन फिल्म थी और इसे इनके छोटे भाई विजय आनंद ने निर्देशित किया था। फिल्म के गीत सदाबहार हैं, जो आज भी कानों में मधुरता घोलती है।
फिल्म गाइड ने कई पुरस्कार अर्जित किए। 14वें फिल्मफेयर पुरस्कारों में इसने सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ संवाद, सर्वश्रेष्ठ कहानी और सर्वश्रेष्ठ छायांकन के लिए जीत हासिल की थी। 38वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा की फिल्म के लिए नामांकित किया गया था, लेकिन इसे नामांकित व्यक्ति के रूप में स्वीकार नहीं किया गया। टाइम पत्रिका ने 2012 में इसे "सर्वश्रेष्ठ बॉलीवुड क्लासिक्स" की सूची में नंबर 4 पर सूचीबद्ध किया था।
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