भारत बंद का विचित्र स्वरूप, हास्य-व्यंग्य दोहे के रूप (13/11मात्रा)
झूठ, झूठ सब झूठ है,
आरक्षण नहीं बात;
सिर्फ सरकार विरोध है,
राष्ट्रहित ही घात।
कहां आरक्षण है हटा,
ना हुआ घमासान;
आमचुनाव चला गया,
ना मिटा संविधान।
जनता चढ़ बाजार में,
भीड़ देते जुटाय;
आनन-फानन हैं जुटे,
टायर दियो जलाय।
यही भारत बंदी है,
देख सभी घबराय;
आजादी अधूरी है,
ना समझे कविराय।
कुछ भी ना कवि बोलते,
भारी हैं महा अबोध;
खुद को खुद ही कवि कहे,
नाम सुन्दर "सुबोध"।
सुबोध झा
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