पत्थर भी पानी बन जाता है, जब झूठ पर झूठ कह जाता है


 पत्थर भी पानी बन जाता है

पत्थर भी पानी बन जाता है, जब झूठ पर झूठ कह जाता है

जब दिल में लगन हो जाता है;

सेवाभाव मगन हो जाता है;


जब मानव तन ठान लेता है;

पत्थर भी पानी बन जाता है।


जब अनपढ़ ज्ञान पिलाता है;

जब झूठा ढ़ाड़स दिलाता है;


जब सूरज पश्चिम उगता है;

पत्थर भी पानी बन जाता है। 


जब हिमालय हिम पिघलाता है;

जब धरा पर प्रलय बन आता है;


सब उलट पलट बह जाता है;

पत्थर भी पानी बन जाता है।


जब घोर कलियुग आ जाता है;

मानव को मानव ना भाता है;


फिर शिव तांडव दिखलाता है;

पत्थर भी पानी बन जाता है।


जब चुनाव सर चढ़ जाता है;

भ्रष्टाचार बहुत बढ़ जाता है;


लोकतंत्र कलंकित होता है;

पत्थर भी पानी बन जाता है।


जब झूठ पर झूठ कह जाता है; 

जब सिर से पानी बह जाता है;


फिर मानव मानव से टकराता है;

पत्थर भी पानी बन जाता है।


जब शिष्टाचार खत्म हो जाता है;

व्यभिचार अधिक बढ़ जाता है;


इन्सानियत शर्मिंदा हो जाती है;

पत्थर भी पानी बन जाता है।



सुबोध झा

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