छोटा पंचगढ़ में धूमधाम से मनाया जा रहा है सरहुल पर्व, गणमान्यों ने दी जिलेवासियों को शुभकामनाएं
साहिबगंज : प्रकृति को समर्पित सरहुल पर्व झारखंड राज्य का प्रमुख त्यौहार है। सरहुल त्यौहार झारखंड की कई जनजातियों के लिए एक महत्वपूर्ण भी त्यौहार है, खासकर उरांव जनजाति के लिए। उरांव जनजाति प्रकृति की पूजा करती है और सरहुल त्यौहार के दौरान वे साल के पेड़ की पूजा करते हैं। शहर के छोटा पंचगढ़, जिरवाबाड़ी में जिलास्तरीय सरहुल पर्व आज रविवार को धूमधाम से मनाया जा रहा है।
'सर' और 'हुल' से बना है सरहुल
सरहुल दो शब्दों के मिलन, 'सर' और 'हुल' से बना सम्पूर्ण शब्द है। सर का मतलब सरई या सखुआ का फूल होता है। वहीं, हूल का मतलब क्रांति होता है। इस प्रकार सखुआ फूलों की क्रांति को सरहुल कहा जाता है। सरहुल में साल या सखुआ वृक्ष की विशेष तौर पर पूजा की जाती है।
सरहुल में प्रकृति की होती है पूजा
सरहुल का त्यौहार प्रकृति को समर्पित है। त्यौहार मनाने के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। उरांव जनजाति समाज इस त्यौहार को मनाए जाने के बाद ही नए फसल का उपयोग खाद्य के रूप में करते हैं। मुख्यतः यह फूलों और फसलों का त्यौहार है। यह त्यौहार नए साल की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है।
प्रकृति के उत्सव का प्रतिनिधित्व करता है सरहुल
पतझड़ के कारण इस ऋतु में पेड़ों की टहनियों पर नए नए फूल एवं पत्ते खिलते हैं। इस पर्व में साल के वृक्षों पर खिलने वाले फूलों का विशेष महत्व है। मुख्यतः यह पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है, जिसकी शुरुआत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीय से अलग – अलग तिथि को गांव – गांव तक में होती है। कह सकते हैं कि सरहुल प्रकृति के उत्सव का प्रतिनिधित्व करता है। सरहुल पर्व को लेकर चमरू उरांव, बलदेव उरांव, रंजीत उरांव, अनिल मुंडा, नेता उरांव व अन्य ने जिलेवासियों को शुभकामनाएं दी हैं।
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