आर्द्रा नक्षत्र: मानसून के आगमन का प्रतीक, जानिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
22 जून से 6 जुलाई तक रहेगा आर्द्रा नक्षत्र | शिव के रुद्र रूप और कृषि आरंभ से गहरा है संबंध
डेस्क रिपोर्ट | विशेष संवाददाता: संजय कुमार धीरज
हिंदू पंचांग में नक्षत्रों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है, और इन्हीं में से एक है आर्द्रा नक्षत्र, जिसे प्रकृति, वर्षा और शिव की आराधना से जुड़ा हुआ माना जाता है। इस वर्ष आर्द्रा नक्षत्र 22 जून से शुरू होकर 6 जुलाई 2025 तक रहेगा। इस अवधि में सूर्य का गमन आर्द्रा नक्षत्र में होता है, जो भारतीय ज्योतिष और धार्मिक परंपराओं में गहरे अर्थ रखता है।
आर्द्रा नक्षत्र और सूर्य का संबंध: मानसून की दस्तक
ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार, जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करता है, तो इसे वर्षा ऋतु यानी मानसून की शुरुआत का संकेत माना जाता है। इस वर्ष 22 जून को सूर्य का प्रवेश आर्द्रा में हो चुका है, और यह 6 जुलाई तक इस नक्षत्र में स्थित रहेगा।
भारत के कई हिस्सों, विशेषकर बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में यह समय खेती-किसानी की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। किसान इसी काल से बीज बोने, खेत जोतने और वर्षा आधारित कृषि गतिविधियों की शुरुआत करते हैं। यह काल ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि जीवनशैली का आधार बनता है।
धार्मिक महत्व: शिव के रुद्र रूप से जुड़ा है आर्द्रा नक्षत्र
आर्द्रा नक्षत्र का संबंध भगवान शिव के रौद्र या रुद्र रूप से भी जोड़ा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस काल में रुद्र रूपी शिव की उपासना विशेष फलदायी होती है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि आर्द्रा नक्षत्र के दिन देवी-देवताओं की पूजा और दर्शन का विशेष पुण्य प्राप्त होता है। इसलिए इस दौरान शिव मंदिरों में दर्शन-पूजन और विशेष अभिषेक की परंपरा भी देखी जाती है।
सांस्कृतिक परंपराएं: खीर-पूरी और आर्द्रा थाली का विशेष महत्व
आर्द्रा नक्षत्र के दौरान बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के ग्रामीण और शहरी इलाकों में विशेष पकवान बनाने की परंपरा है। इस अवसर पर घरों में खीर, दाल की पूरी, आम और अन्य मौसमी व्यंजन बनाए जाते हैं, जिन्हें देवी-देवताओं को भोग स्वरूप अर्पित किया जाता है।
"आर्द्रा की थाली" का यह भोग मानसून के स्वागत का प्रतीक माना जाता है। यह परंपरा न केवल धार्मिक भावना को दर्शाती है, बल्कि कृषि संस्कृति और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का एक माध्यम भी है। लोग परिवार सहित भोजन करते हैं और वातावरण में वर्षा के साथ उमंग और उल्लास का संचार होता है।
पौराणिक और भाषाई अर्थ: 'आर्द्रा' का शाब्दिक संकेत
संस्कृत में "आर्द्रा" का अर्थ होता है गीलापन या नमी, जो सीधे तौर पर वर्षा और जीवनदायिनी जल से जुड़ा हुआ है। यह नक्षत्र बताता है कि अब भूमि सिंचित होगी, जीवन में हरियाली आएगी, और जीव-जगत को नया जीवन मिलेगा।
पौराणिक ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है कि आर्द्रा नक्षत्र के दौरान देवताओं की कृपा प्राप्त करने के लिए व्रत, पूजन और कथा श्रवण विशेष फलदायी होते हैं। यह काल मानसिक और आध्यात्मिक शुद्धि के लिए भी उत्तम माना गया है।
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