पिंगली वैंकेया: तिरंगे के निर्माता की अनसुनी कहानी
2 अगस्त 1876 को जन्मे, 1963 में गुमनामी में दुनिया से विदा हुए – पिंगली वैंकेया का जीवन एक सच्चे देशभक्त और विज़नरी का प्रतीक है।
आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टम में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में जन्मे पिंगली वैंकेया को बहुत कम लोग पहचानते हैं, लेकिन उन्होंने ऐसा काम किया है, जिसे हर भारतीय रोज़ सलाम करता है – भारत का तिरंगा।
🇮🇳 5 साल तक झंडों का अध्ययन
वैंकेया ने दुनियाभर के झंडों का 5 वर्षों तक अध्ययन किया और 30 से अधिक डिजाइन तैयार किए। उनका सपना था कि भारत का भी एक ऐसा राष्ट्रीय ध्वज हो, जो देश की एकता, शांति और बलिदान का प्रतीक बने।
🗓 22 जुलाई 1947: सपना हुआ साकार
भारत की संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को पिंगली वैंकेया द्वारा डिज़ाइन किए गए तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया। केसरिया, सफेद और हरे रंग के इस झंडे के केंद्र में अशोक चक्र को जगह दी गई, जो धर्म और प्रगति का प्रतीक है।
😔 गुमनामी में बीता अंतिम समय
देश को पहचान देने वाले वैंकेया का जीवन विजयवाड़ा की एक झोपड़ी में गुमनामी में बीता। 1963 में उनका निधन हुआ। उस वक्त तक उन्हें जानने वाले बहुत कम लोग थे।
📮 2009 में मिला सम्मान
वर्ष 2009 में भारतीय डाक विभाग ने पिंगली वैंकेया के सम्मान में डाक टिकट जारी किया। इसके बाद से लोगों ने तिरंगे के इस महान रचनाकार को जानना और सम्मान देना शुरू किया।
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