भगवान बिरसा मुंडा: आदिवासी प्रतिरोध, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध उलगुलान
भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की कहानी अनेक संघर्षों से मिलकर बनी है, लेकिन आदिवासी प्रतिरोध के अनेक अध्याय मुख्यधारा इतिहास में अक्सर उपेक्षित रहे। इन्हीं अध्यायों में सबसे महत्वपूर्ण है भगवान बिरसा मुंडा का आंदोलन—जो केवल धार्मिक या सामाजिक सुधार तक सीमित नहीं था, बल्कि एक सशक्त राजनीतिक और सांस्कृतिक क्रांति भी था।
15 नवंबर को मनाई जाने वाली बिरसा मुंडा जयंती उनके महत्त्वपूर्ण योगदान को याद करने का अवसर है। बिरसा का ‘उलगुलान’ (महान विद्रोह) ब्रिटिश शासन, जमींदारी शोषण, धार्मिक हस्तक्षेप और आदिवासी अस्मिता पर खतरे के विरुद्ध लड़ाई थी।
छोटानागपुर की परंपरा और औपनिवेशिक हस्तक्षेप
मुंडा समाज की अर्थव्यवस्था ‘खुंटकट्टी’ नामक सामुदायिक भूमि व्यवस्था पर आधारित थी। लेकिन ब्रिटिश शासन, जमींदारों और बिचौलियों के बढ़ते प्रभाव ने इस व्यवस्था को तोड़ दिया। जमीन पर कब्ज़ा, भारी लगान और सांस्कृतिक हस्तक्षेप ने आदिवासी समाज में गहरा असंतोष पैदा किया।
1789 से 1890 के बीच कोल विद्रोह, भूमिज विद्रोह और सरदार आंदोलन जैसे बड़े प्रतिरोध हुए—इन्हीं के बीच बिरसा मुंडा का उदय हुआ।
बिरसा मुंडा का व्यक्तित्व और वैचारिक निर्माण
1895: पहला बड़ा आंदोलन और ब्रिटिश दमन
ब्रिटिश शासन ने उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया, लेकिन जेल से लौटने के बाद उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई। अकाल और महामारी के समय जनता की सेवा करने से बिरसा आदिवासी समाज के सर्वमान्य नायक बन गए।
1897–99: सामाजिक सुधार और सांस्कृतिक पुनर्जागरण
1899–1900: ‘उलगुलान’—महान विद्रोह
बढ़ते शोषण और अकाल के समय उनके अनुयायियों ने सशस्त्र संघर्ष की अनुमति मांगी। इसके साथ ही उलगुलान शुरू हुआ।
-
मिशन केंद्रों, पुलिस थानों और जमींदारों के अड्डों पर हमले
-
लगान रोकने की घोषणाएं
-
जंगल-जमीन वापस लेने की मांग
-
ब्रिटिश प्रशासन का विरोध
डोम्बारी पहाड़ी के संघर्ष में सैकड़ों मुंडाओं की शहादत हुई—यह जनसंहार झारखंड के इतिहास का जांबाज़ अध्याय है।
अंततः बिरसा को गिरफ्तार किया गया और 9 जून 1900 को रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई—आधिकारिक रूप से कारण “कॉलरा” बताया गया, परंतु परिस्थितियाँ संदिग्ध रहीं।
बिरसा आंदोलन का ऐतिहासिक महत्व
1. भूमि अधिकारों का संरक्षण – CNT एक्ट
बिरसा आंदोलन के दबाव में ब्रिटिश शासन को छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (CNT Act, 1908) लागू करना पड़ा—यह आदिवासियों की भूमि सुरक्षा का सबसे बड़ा कानून है।
2. आदिवासी अस्मिता और सांस्कृतिक गौरव
बिरसा ने सामाजिक आत्मगौरव को पुनर्जीवित किया और आदिवासी समुदाय को अपने अधिकारों के लिए एकजुट किया।
3. स्वतंत्रता-संग्राम में अग्रणी भूमिका
निष्कर्ष

0 Response to "भगवान बिरसा मुंडा: आदिवासी प्रतिरोध, सांस्कृतिक पुनर्जागरण और औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध उलगुलान"
Post a Comment