प्रकृति, पर्यावरण, परंपरा व संस्कृति का पर्व है सरहुल : डॉ रणजीत कुमार सिंह
Sahibganj News : वीर योद्धा सिद्धो - कान्हू की जंयती, सरहुल पर्व व 43 वें संताली साहित्य दिवस का कोविड -19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए पूरे संताली विधि- विधान से मनाया गया। हालांकि कोरोना महामारी के कारण यह कार्यक्रम थोड़ा फीका रहा।
मौके पर छात्र नेता जितेंद्र मरांडी ने कहा कि महाविध्यालय में संताली साहित्य एकेडमी व संताली साहित्य पुस्तक पत्रिका के लिए संताली साहित्य के सम्वर्धन के लिए सकल्प लें।
बता दें कि11 अप्रैल 1978 को पहली बार संताल परगना के दुमका महाविद्यालय में सरहुल पर्व मनाया गया था। जबकि1992 से सिद्धो-कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय के स्थापना काल से संताल परगना के सभी महाविद्यालय में सरहुल पर्व मनाया जा रहा है।
डॉ. रणजीत सिंह ने कहा कि साहित्य किसी राष्ट्र या समाज का दर्पण होता है। बस अपनी मातृभाषा के साथ - साथ अन्य भाषा को उससे समन्वय स्थापित करने की जरूरत है।bआज का दिन हमें अपने पर्व, परंपरा, सभ्यता, संस्कृति व भाषा पर गर्व करने का दिन है।
इस अवसर पर महाविद्यालय के आदिवासी कल्याण छात्रावास के जितेंद्र मरांडी के नेतृत्व में सरोल वाह एवं 43वें संताली दिवस मनाया गया।
इसके पूर्व 2 मिनट का मौन रखकर केकेएम कॉलेज पाकुड़ के प्रभारी प्राचार्य डॉ. सुधीर हेंब्रम के आकस्मिक निधन पर शोक सभा का आयोजन किया गया। शोक सभा में डॉ. रणजीत कुमार सिंह ने कहा कि डॉ. सुधीर, हिंदी के विद्वान् शिक्षक व मिलनसार व्यक्तित्व के धनी थे।
शोक सभा में सैकड़ों आदीवासी छात्र -छात्राओं ने नम आंखों से श्रद्धांजलि दी। ज्ञात रहे कि सरहुल पर्व संताल आदिवासियों का पवित्र पर्व है। इसमें पानी लगाकर एक दूसरे को पवित्र किया जाता है।
कार्यक्रम में छात्र नेता जितेंद्र मरांडी, लक्ष्मण मुर्मू, चंदन, हरिदास हांसदा, मोहन, अनीता, मेरी, रीना, जूली, मनीषा, ओमल मंडल सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।
ज्ञात हो कि पर्व का पूजा जाहेर स्थान में धार्मिक पुजारी नायकी जीतलाल मुर्मू को आम नाइटी सोने लाल मरांडी जोग माझी के द्वारा जाहिर अरोरा मारो करो गोसाई तेरा मोरे को तरुण के नाम पर सखुवा का फूल और मुर्गा चढ़ाया जाता है।
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By : Sanjay Kumar Dhiraj
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