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बांझी गोली कांड के शहीद एंथनी मुर्मू स्मृति दिवस पर विशेष रिपोर्ट


Sahibganj News : सांसद फादर एंथोनी मुर्मू एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे। वह जनता पार्टी के सदस्य के रूप में बिहार के राजमहल से लोकसभा के लिए चुने गए। मुर्मू जीसस पुजारी थे। उन्होंने संथाल आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

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बोरियो का चर्चित बांझी गोली कांड जल, जंगल, जमीन व शोषण के खिलाफ आदिवासियों का आंदोलन था। मछली मारने व लकड़ी काटने के विवाद में पुलिस ने 19.4.1985 को सरेआम एंथोनी मुर्मू सहित 15 आदिवासियों को गोलियों से भून दिया था।

जिनमें मदन मुर्मू, ठाकुर टुडू, दुखन टुडू, पांडा मरांडी, बोदगा हेम्ब्रम, बड़का मुर्मू, मुंशी कर्मकार, मोदगो मुर्मू, मरांग मुर्मू, सकला टुडू, कादना मुर्मू, अन्ना मुर्मू, दमया बेसरा व त्रिभूवन मरांडी शामिल थे। करीब आधा घंटा तक चले पुलिसिया फायरिंग में 80 चक्र गोलियां चलायी गयी थी।

गोलीकांड के आलोक में पुलिस द्वारा बताया गया कि उक्त भीड़ ने पुलिस पर जहर बुझे तीर चलाए। जवाब में भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने अश्रु गैस के गोले छोड़े। भीड़ नियंत्रण में नही आने पर पुलिस की गोलियों की बौछार ने एक काला इतिहास रच दिया।


बांझी गोली कांड की गूंज लोकसभा के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में भी आया था। प्रधानमंत्री ने गृह राज्यमंत्री राम दुलारी सिंहा को बांझी गांव जाकर मामले का जायजा का दायित्व सौंपा था। संथाल परगना के आयुक्त की रिपोर्ट राज्य सरकार को भी सौंपी गयी थी।

ज्ञात हो कि 1980 के दशक में बांझी में चार लकड़ी के व्यवसायी हुआ करते थे। मोती भगत, मदन भगत, कैय्यूम मिंया, बद्री भगत। जिन्हें सरकार द्वारा लकड़ी की खरीद-बिक्री का लाइसेंस प्राप्त था। औने-पौने दामों पर आदिवासियों की लकड़ी खरीद कर ऊंचे दामों पर बेचना इनका पेशा था।

जिससे वन रक्षक एरिक हॉसदा समेत आदिवासियों में असंतोष की भावना पनप रही थी। इसी दरम्यान बांझी बाजार के तालाब की बंदोबस्ती एक गैर सरकारी दबंग व्यक्ति मोती भगत के नाम हो गई। आदिवासी इस पोखर में पूर्व से मछली मारते आ रहे थे।


पोखर का ठेका मिलने के बाद मोती ने आदिवासियों को मछली मारने के लिए एक हिस्सा दे रखा था। आदिवासियों को इसी पोखर से मटरु मुर्मू की क्षत-विक्षत लाश मिली थी। जिसे देख आदिवासियों में रोष व्याप्त था। इसी बीच 25.3.1985 को आदिवासियों ने मोती भगत के घर व गोदाम में हमला कर दिया।

आदिवासियों के असंतोष को देखते हुए पुलिस ने मोती भगत के ऊपर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत हत्या का मुकदमा दर्ज किया। गिरफ्तारी के पूर्व ही मोती रहस्यमय ढंग से फरार हो गया। 25-26 मार्च 1980 को उपायुक्त बाघम्बर प्रसाद व अनुमंडलाधिकारी ने बांझी गांव का निरीक्षण किया।

वहां प्रशासन की ओर से सशस्त्र बल की तैनाती की गई। विरोधस्वरूप आदिवासी लोग अप्रोल, सवैया, पहाड़पुर, बीरबलकान्दर, देवपहाड़ आदि कई गांव से ढोल नगाड़ा व तीर धनुष एवं पारंपरिक हथियार के साथ बड़ी तादाद में जमा होने लगे। पंचायत भवन में सरकारी अधिकारी कैंप कर रहे थे।


पूर्व सांसद फादर एंथोनी मुर्मू, मदन मुर्मू, जेठा मुर्मू, तथा प्रशासनिक पदाधिकारी के बीच वार्ता प्रांरभ हुई। इसी बीच उग्र भीड़ ने श्यामल दे, लाल साह व पोस्ट आफिस को आग के हवाले कर दिया था।

मामले की नजाकत और आदिवासियों के उग्र आंदोलन को देखते हुए उस समय तैनात एसडीओ ने गोली चलाने का आदेश दे डाला। बांझी गोली कांड से जुड़े कई परिवारों की स्थिति या तो जस के तस है या तो गांव छोड़ चुके हैं।

भूख, गरीबी व बेरोजगारी का अवसाद भोग रहे इन आदिवासी परिवार के सदस्य दर-दर की ठोकर खाने को विवश हैं। प्रत्येक साल इन शहीदों के स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित कर लोग चले जाते हैं।


बिहार राज्य से अलग हुए कई साल गुजर गए हैं। इस बीच कई मुख्यमंत्री बने। अलग झारखड राज्य बनने के बाबजूद अब तक शहीद के परिजन उपेक्षित हैं।

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