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यार, हॉस्टल के दिन ऐसे ही होते हैं | रचना - आरिफ अंसारी


 यार, हॉस्टल के दिन ऐसे ही होते हैं--

यार, हॉस्टल के दिन ऐसे ही होते हैं | रचना - आरिफ अंसारी

घर में समय का अंदाज़ा न लगाने वाले

यहाँ पल-पल को मुश्किलों में बिताते हैं

दिनभर घर में दोस्तों के साथ रहने वाले

यहाँ अकेले छोटे से कमरे में  बिताते हैं।


यार, हॉस्टल के दिन ऐसे ही होते  हैं--

 


जिस खाना को घर में ठुकरा देने वाले

यहाँ उसी खाने को तरसते हैं,

जिस कपड़े को एक दिन से ज्यादा न पहनने वाले

यहाँ उसी कपड़े को सप्तों तक पहनते हैं l


यार, हॉस्टल के दिन ऐसे ही होते हैं--


 

घर में इन्वर्टर की रौशनी से पढ़ने वाले

यहाँ किसी तरह मोमबत्ती से ही पढ़ पाते हैं,

घर में सैकड़ो ख़्वाहिश रखने वाले,

यहाँ सिर्फ जरूरतें ही पूरी कर पाते हैंl


यार, हॉस्टल के दिन ऐसे ही होते हैं--

 


पापा की एक छोटी से डांट से रो देने वाले

अब मकान मालिक की मार से भी खुश रहते हैं,

तबियत ख़राब होने पर माँ की गोद में रहने वाले

यहाँ अकेले बिस्तर पर रोते हुए बिताते है


यार, हॉस्टल के दिन ऐसे ही होते हैं--


 


अब कॉलेज से लौटते वक़्त जल्दबाजी नहीं होती

क्योंकि मुझे पता है कि हॉस्टल में माँ नही होती,

बुरे सपने देखते वक़्त माँ चिल्लाती और भागी चली आती थीं

चिल्लाते तो अब भी हैं, पर माँ कहाँ आने वाली।


सुबह के आठ बज चुके हैं आवाज़ सुनकर उठने वाले,

अब अलार्म के सहारे ही उठते हैं।

जली हुई रोटी तो छोड़ो, कभी भूखे पेट भी सो जाते हैं

हर तरह की समस्याएं हमें ही झेलने होते हैंl


यार, हॉस्टल के दिन ऐसे ही होते हैं--

 स्वरचित कविता

✍️Md Arif Ansari

  SP College, Dumka.
 
md arif ansari

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