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वह बचपन याद आता है | रचना - फैसल इकबाल


वह बचपन याद आता है

वह बचपन याद आता है | रचना - फैसल इकबाल

क्या दिन था - मैं कुछ भी बोलता, लोग मुस्कराने लगते थे। 

आज वही जुबां है- कुछ बोलने पर लोग रोने लगते हैं।। 

काश मैं आज बच्चा होता,

वह प्यारा बचपन बड़ा याद आता है।। 


झूठे थे फिर भी कितने सच्चे थे, 

लोग सच्चा इंसान व भगवान समान मानते थे। 

आज वही इंसान हूँ- सच्चा बोलने पर भी शक करते हैं।। 

काश मैं आज बच्चा होता, वह प्यारा बचपन बड़ा याद आता है।। 


जब मैं चल के रूक जाता, 

लोग मुझे फिर से चलने को कहते थे। 

आज वही टांगें हैं- जिसके चलने से लोग पीछे खींचते हैं।। 

काश मैं आज बच्चा होता, वह प्यार बचपन बड़ा याद आता है।। 


बचपन में थोड़ा रोने या चिल्लाने पर लोग गोद उठा लेते थे। 

आज तो उंची बोलने या चिल्लाने पर पुलिस वाले या कोई ओर उठा लेते हैं।। 

काश मैं आज बच्चा होता, वह प्यारा बचपन बड़ा याद आता है।। 


बचपन में किसी के गोद में बैठ जाने से

दो, चार, दस रुपये मिल जाते थे। 

आज वही दो, चार, दस रूपये के लिए पूरा दिन भटकना,

किसी का बोझा उठाना तो किसी की लाठी खानी पड़ती है।। 

काश मैं आज बच्चा होता, वह प्यारा बचपन बड़ा याद आता है।। 


बचपन में क्या अमीरी व गरीबी, क्या महंगी व सस्ती,

इक दो रूपये में तो जो चाहे मिल जाते थे। 

आज वही चीजें खरीदने पर भरी जेब से वही इक - दो रूपये ही बचते हैं।। 

काश मैं आज बच्चा होता, वह प्यारा बचपन याद आता है।


लोग अपना दिल बहलाने के लिए

मेरा तोतला जुबां सुनने के लिए हमें घर बुलाते थे। 

आज मुझे अपनी बातें बताने के लिए लोगों को बुलाना पड़ता है।। 

काश आज हम बच्चे होते, वह प्यारा बचपन बड़ा याद आता है


 स्वरचित कविता

✍️Faisal Iqubal
     Tuitor, ABC Coaching Centre, Borio

Faisal Iqubal

3 Responses to "वह बचपन याद आता है | रचना - फैसल इकबाल"

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