कविता -- बेपनाह मोहब्बत
ये लम्हा, ये वक़्त, ये दौर गुजर जाएंगे--,
जरा हमारी गलियों में आकर तो देखिए।
हमारी बेरुखी मोहब्बत भी भाएगी तुम्हें--,
हमें अपना हमसफर बनाकर तो देखिए।
भूल जाओगे खुदा की इबादत भी करना--,
कभी हमें बेइंतहा चाह कर तो देखिए।
इस धुँध भरी जहाँ में आशियाना भी मिलेगा--,
यकीन न हो तो एक बार आज़माकर तो देखिए।
ये बेरंग जिंदगी भी रंगीन लगेगी आपको--,
हमारे इश्क का गुलाल उड़ाकर तो देखिए।
हमारे इश्क का गुलाल उड़ाकर तो देखिए।
चाहत के फूल भी खिलेंगें आपके दिल के बागीचे में--,
एक बार नफ़रत की भावना को दफ़नाकर तो देखिए।
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