कैलेंडर बदलें संस्कृति नहीं : ABVP के इन्द्रोजीत की कलम से
Sahibganj news: अभी के मौजूदा समय में जिस तरह हम देख रहे हैं कि वर्तमान समय में भारतवर्ष में रहने वाले लोगों के ऊपर में खासकर,
युवा वर्ग के ऊपर पश्चिमी सभ्यता इस प्रकार से हावी होती जा रही है कि अभी की युवा पीढ़ी लगातार अपने सनातन धर्म के परंपरा और रीति-रिवाज को भूलते जा रहे हैं और उन सभी के ऊपर में पश्चिमी सभ्यता की मानसिकता इस तरह से हावी हो चुकी है कि वे सभी अपने सदियों से चले आ रहे परंपरा को भूलते जा रहे हैं।
इसके साथ ही हम यह भी कह सकते हैं कि 31 दिसम्बर की रात नए साल के स्वागत के लिए लोग जमकर शराब पीते है, हंगामा करते है, रात को पीकर गाड़ी चलने से दुर्घटना की सम्भावना होती है, रेप जैसी वारदात, पुलिस प्रशासन बेहाल और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का विनाश होता है, जबकि भारतीय नववर्ष, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा विक्रम संवत से शुरू होता है।
पहला नवरात्र होता है, जिसमें घर घर मे माता रानी की पूजा होती है। शुद्ध सात्विक वातावरण बनता है, जबकि चैत्र प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् की शुरुआत, भगवान झूलेलाल का जन्म, नवरात्र प्रारंम्भ, ब्रम्हा जी द्वारा सृष्टि की रचना इत्यादि का संबंध इसी दिन से माना जाता है और इसका आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों प्रमाण उपलब्ध है।
यह काफी निंदनीय है, क्योंकि अगर ऐसा ही लगातार चलता रहा तो वह समय दूर नहीं जब हम अपनी भारतीय संस्कृति को किताबों में ढूंढते फिरेंगे, इसलिए अभी भी वक्त है आप सभी अपनी सभ्यता और संस्कृति को पहचाने, क्योंकि सनातन धर्म में जन्म लेना बहुत ही गौरव की बात होती है।
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