आखिर ऐसी कौन से पौराणिक घटनाएं घटी थी, जिसके चलते मनाया जाता है मकर संक्रांति का पर्व, मकर संक्रांति मनाने की 8 पौराणिक घटनाएं, जो इस दिन को बनाती है खास
मकर संक्रांति का पर्व प्रतिवर्ष 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है।
इस वर्ष 15 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा। आइए जानते हैं कि आखिर मकर संक्रांति के दिन ऐसी कौन सी 8 पौराणिक घटनाएं घटी थी, जिसके चलते मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाता है।
1.) गंगा जा मिली थी गंगा सागर में :- मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथजी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था, इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर में मेला लगता है। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों का गंगाजल, अक्षत, तिल से श्राद्ध तर्पण किया था। तब से ही माघ मकर संक्रांति स्नान और मकर संक्रांति श्राद्ध तर्पण की प्रथा आज तक प्रचलित है। इसीलिए गंगा जल का स्पर्श, पान, स्नान और दर्शन सभी पुण्यदायक फल प्रदान करता है।
2.) श्रीहरि विष्णु ने किया था असुरों का वध :- इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत करके युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी। उन्होंने सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इसलिए यह दिन बुराइयों और नाकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
3.) सूर्यवंशी राजा करते हैं सूर्य की पूजा :-
रामायण काल से ही भारतीय संस्कृति में दैनिक सूर्य पूजा का प्रचलन चला आ रहा है। रामकथा में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम द्वारा नित्य सूर्य पूजा का उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य की विशेष आराधना होती है।
4.) सूर्य की सातवीं किरण :- सूर्य की सातवीं किरण भारतवर्ष में आध्यात्मिक उन्नति की प्रेरणा देने वाली है। सातवीं किरण का प्रभाव भारत वर्ष में गंगा-जमुना के मध्य अधिक समय तक रहता है। इस भौगोलिक स्थिति के कारण ही हरिद्वार और प्रयाग में माघ मेला अर्थात मकर संक्रांति या पूर्ण कुंभ तथा अर्द्धकुंभ के विशेष उत्सव का आयोजन होता है।
5.) भीष्म पितामह :-
महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए सूर्य के उत्तरायण होने का ही इंतजार किया था। इसका कारण यह था कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएं या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है। उनका श्राद्ध संस्कार भी सूर्य की उत्तरायण गति में हुआ था। फलतः आज तक पितरों की प्रसन्नता के लिए तिल अर्घ्य एवं जल तर्पण की प्रथा मकर संक्रांति के अवसर पर प्रचलित है।
6 सूर्य जाते हैं अपने पुत्र शनि के घर :- हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार इसी दिन सूर्य अपने पुत्र शनि के घर एक महीने के लिए जाते हैं, क्योंकि मकर राशि का स्वामी शनि है। कथा के अनुसार सूर्यदेव ने शनि और उनकी माता छाया को खुद से अलग कर दिया था, जिसके कारण शनि के प्रकोप के चलते उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था।
तब सूर्यदेव के दूसरे बेटे यमराज ने इस रोग को ठीक किया था। रोगमुक्त होने के बाद सूर्यदेव ने क्रोध में आकर उनके घर कुंभ को जला दिया था। परंतु बाद में यमराज के समझाने पर वे जब शनि के घर गए, तो उन्होंने वहां देखा कि सबकुछ जल चुका था। केवल काला तिल वैसे का वैसा रखा था। अपने पिता को देखकर शनिदेव ने उनका स्वागत उसी काले तिल से किया।
इससे प्रसन्न होकर सूर्य ने उन्हें दूसरा घर ‘मकर’ उपहार में दे दिया। इसके बाद सूर्यदेव ने शनि को कहा कि जब वे उनके नए घर मकर में आएंगे, तो उनका घर फिर से धन और धान्य से भर जाएगा। साथ ही कहा कि मकर संक्रांति के दिन जो भी काले तिल और गुड़ से मेरी पूजा करेगा उसके सभी कष्ट दूर हो जाएंगे।
7.) यशोदाजी ने किया था व्रत :- कहते हैं कि माता यशोदा ने श्रीकृष्णजी के लिए व्रत किया था, तब सूर्य उत्तरायण हो रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। तभी से मकर संक्रांति के व्रत का प्रचलन प्रारंभ हुआ।
8.) उत्तरायण होता है सूर्य तब देवताओं का प्रारंभ होता है दिन :-
मकर संक्रांति के दिन सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण गति करने लगते हैं। इस दिन से देवताओं का छह माह का दिन आरंभ होता है, जो आषाढ़ मास तक रहता है। सूर्य के उत्तरायण होने के बाद से देवों की ब्रह्म मुहूर्त उपासना का पुण्यकाल प्रारंभ हो जाता है।
इस काल को ही परा-अपरा विद्या की प्राप्ति का काल कहा जाता है। इसे साधना का सिद्धिकाल भी कहा गया है। इस काल में देव प्रतिष्ठा, गृह निर्माण, यज्ञ कर्म आदि पुनीत कर्म किए जाते हैं। मकर संक्रांति के एक दिन पूर्व से ही व्रत उपवास में रहकर योग्य पात्रों को दान देना चाहिए।
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