क्यों बार-बार चोरी हो जाती है माता पार्वती की मूर्ति, राजस्थान के इस मंदिर में पार्वती को शिव के साथ रहने क्यों नहीं देते कुंवारे लोग, जानें क्या है परंपरा और मान्यता?
राजस्थान के बूंदी जिले में हिंडोली तहसील में पड़ता है रघुनाथ घाट शिव मंदिर
रामसागर झील का किनारा मिलता है यहां। काफी पुराना है यह मंदिर। अंदर भगवान शिव की मूर्ति मौजूद है, लेकिन उनके बगल में माता पार्वती की जगह खाली है। वहां मूर्ति तो थी, लेकिन अभी नहीं है।
आखिर मूर्ति गई कहां
मंदिर के पुजारी पंडित रामबाबू पराशर जब यह बताते हैं, तो उनके चेहरे पर चिंता के बिल्कुल भी भाव नहीं आते। इस मंदिर से पार्वती की मूर्ति का चोरी होना आम है, बल्कि एक ख़ास परंपरा है। इस साल अब तक तीन बार मूर्ति चोरी हो चुकी है।
पंडित रामबाबू बताते हैं कि ऐसा 35-40 साल से हो रहा है। दरअसल, इस चोरी के पीछे है एक पुरानी मान्यता। लोग मानते हैं कि जिनकी शादी नहीं हो रही, अगर वे मंदिर से माता पार्वती की मूर्ति चुराकर ले जाएं, तो उनका रिश्ता पक्का हो जाता है। बस इसी मान्यता के कारण भक्त माता पार्वती को भगवान शिव के साथ रहने नहीं देते। पूरे साल में बमुश्किल एकाध महीने ही होते हैं, जब दोनों साथ रह पाते हैं।
चोरी आराम से हो जाए, इसके लिए एक तरह से पक्का इंतज़ाम किया जाता है यहां। रात 8-9 बजे के बीच पूजा के बाद पुजारी चले जाते हैं, लेकिन कपाट बंद नहीं होता। मंदिर के पट खुले रहते हैं हमेशा। आधी रात से लेकर भोर चार बजे तक का समय ऐसा होता है, जब मंदिर में कोई नहीं रहता। बस इसी दौरान कुंवारे पहुंचते हैं यहां। पार्वती की भगवान शिव के साथ पूजा करते हैं। फिर मन्नत मांग कर अपने साथ माता की मूर्ति ले जाते हैं।
मूर्ति घर में ले जाने के बाद भी रोजाना पूरे विधि-विधान से पूजा करना और भोग लगाना ज़रूरी है। यह नियम कोई बताता नहीं, लेकिन ऐसा वर्षों से चला आ रहा है। जिस कुंवारे ने मूर्ति चुराई है, उसकी शादी हो जाए, तो मन्नत पूरी मानी जाती है। फिर मंदिर में उसी जगह रात 12 से भोर 4 बजे के बीच मूर्ति स्थापित करनी होती है।
मूर्ति दोबारा रखने से पहले भी पूजा करनी होती है। कई बार मूर्ति चुराते या रखते समय कोई देख लेता है, फिर भी टोका नहीं जाता
चोरी करने वाले यहां हमेशा तैयार रहते हैं। एक भक्त ने माता को उनकी जगह रखा कि नहीं, दूसरा आ जाता है उठाने। कई बार तो ऐसा होता है कि कोई मूर्ति रखकर निकलता है मंदिर से और कोई दूसरा कुंवारा अंदर जाकर उठा लेता है।
मंदिर में भगवान शिव के साथ जब पार्वती रहती हैं, तो विशेष पूजा-पाठ की जाती है। यह ख़बर जैसे ही लोगों को मिलती है, मंदिर में दर्शन करने के लिए भीड़ उमड़ने लगती है। लेकिन, ऐसा संयोग कुछ ही दिनों का होता है। मंदिर के पास ही पूजा सामग्री की दुकान लगाने वाले सोमदत्त ने बताया कि महाशिवरात्रि पर अधिकतर मंदिरों में भगवान शिव की पार्वती के साथ पूजा होती है। लेकिन, इस मंदिर में ऐसा संयोग नहीं हुआ।
महाशिवरात्रि पर भी मंदिर में पार्वती की मूर्ति नहीं रह पाती। इस बार भी महाशिवरात्रि पर माता की मूर्ति नहीं है। कोई चुराकर ले गया आसपास के इलाक़ों में हिंडोली के शिव मंदिर को लेकर लोगों की बड़ी आस्था है। मूर्ति किसने और कब चुराई, न तो यह किसी से पूछा जाता है और न ही कोई बताता है। हां, किसी की शादी हो जाती है, तो बगैर किसी को बताए अपनी आस्था के अनुसार विशेष पूजा-पाठ और अनुष्ठान कराता है।
मंदिर के पुजारी पंडित रामबाबू का कहना है कि किसी से कभी कोई मांग नहीं की जाती। लोग अपनी आस्था और श्रद्धा के अनुसार दान दिया करते हैं। हर सोमवार यहां आसपास के गांवों के सैकड़ों लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
ऐसे शुरू हुई परंपरा
मूर्ति चोरी की यह परंपरा कैसे शुरू हुई, इस बारे में पंडित रामबाबू को भी ज़्यादा जानकारी नहीं। कहा जाता है कि एक बार किसी ने यूं ही मंदिर से मूर्ति चुराकर अपने घर में रख ली थी। उसकी शादी नहीं हो रही थी। कुछ दिनों बाद ही शादी हो गई, तो उसने मूर्ति वापस कर दी। यह बात फैली, तो इसने परंपरा का रूप ले लिया।
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