"सिनेमा की बातें" आए थे गायक बनने पर बन गए पुलिस कमिश्नर, पापा, चाचा, जज और ऑफिसर, अमिताभ बच्चन की लगभग हर फिल्मों में आए नजर, इफ्तिखार खान
मनोरंजन
फिल्म "दीवार" में भ्रष्ट इंडस्ट्रीयल और "जंजीर" में पुलिस इंस्पेक्टर की भूमिका में नजर आने वाले अभिनेता इफ्तिखार खान हिंदी सिनेमा की पुरानी फिल्मों में ज्यादातर कड़क पुलिस ऑफिसर के किरदार में नजर आते हैं।
अभिनेता इफ्तेखार खान ने अपनी ज्यादातर फिल्मों में पिता, अंकल, पुलिस ऑफिसर, पुलिस कमिशनर, जज आदि की भूमिकाएं निभाई हैं। इफ्तिखार खान ने अपने करियर में कई फ़िल्में की, लेकिन वह "बंदनी", "सावन भादो", "खेल-खेल में", "एजेंट विनोद" में नेगेटिव भूमिका में भी नजर आ चुके हैं। साथ ही इफ्तिखार खान ने हिंदी फिल्मों के अलावा अमेरिकन टीवी शो "माया" और इंग्लिश फिल्म "बॉम्बे टॉकी" व "सिटी ऑफ जॉय" भी की है। आपको बता दें की इफ्तिखार खान 1940-50 के दशक में बॉलीवुड के "गोल्डन एज " में बहुत बड़े स्टार थे।
इफ्तेखार उर्फ सैय्यदना इफ्तेखार अहमद शरीफ का जन्म 22 फरवरी 1920 को जालंधर में हुआ था। इफ्तेखार बॉलीवुड में सिंगर बनने आए थे, लेकिन उनकी किस्मत ऐसी पलटी कि उन्हें एक्टिंग में ही मजा आने लगा। देखते-देखते वो बड़े स्टार बन गए। इफ्तिखार खान ने 1937 में फिल्म "कज्जाक की लड़की" के जरिए अपने एक्टिंग करियर की शुरूआत की थी।
पहली ही फिल्म में इफ्तिखार खान को दर्शकों ने काफी ज्यादा पसंद किया था। पुराने जमाने की फिल्मों में पुलिसवाले की अनगिनत भूमिकाओं के लिए पहचाने जाने वाले इफ्तिखार खान की जिंदगी काफी रोचक और संघर्षों से भरा हुआ था। केएल सहगल से प्रभावित इफ्तेखार गायक बनना चाहते थे और उन्होंने 1942 के आसपास कलकत्ता में एचएमवी कंपनी द्वारा रिलीज एक प्राइवेट एलबम के लिए दो गाने भी गाए थे।
मगर उनकी कदकाठी और भाषा पर पकड़ ने उन्हें कलकत्ता में बनने वाली फिल्मों का हीरो बना दिया। 1954 में इफ्तेखार ने "मिर्जा गालिब" फिल्म में बादशाह का रोल किया और दर्शकों के बीच अपनी एक्टिंग से लोकप्रिय हो गए। इस फिल्म में भारत भूषण और सुरैया मुख्य भूमिकाओं में थे।
कलकत्ता में ही उन्होंने एक यहूदी लड़की से शादी भी की। कुछ सालों बाद जब भारत का विभाजन हुआ, तो दंगों की आग उन्हें बॉम्बे ले आई, जहां काम की तलाश में कुछ अरसे भटकने के बाद उनकी मुलाकात अशोक कुमार से हुई, जिनसे वे कलकत्ता में पहले सिर्फ एक बार ही मिले थे। इसके बाद दादा मुनि के कहने पर कलकत्ता की फिल्मों के हीरो को बॉम्बे की फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिलने लगे। 1955 में आई "देवदास" में इफ्तेखार ने बीजूदास का रोल किया था।
1955 में आई राज कपूर की 'श्री 420' में इफ्तेखार ने पहली बार पुलिस इंस्पेक्टर का रोल किया। इस फिल्म से पुलिसवाले के रोल में इफ्तेखार को बड़ी पहचान मिली। जिसके बाद एक-एक करके उन्हें कई फिल्में ऑफर हुईं, जिनमें उन्हें पुलिसवाले का रोल ही दिया गया। साल 1957 में अमर कुमार के निर्देशन और राज कपूर के प्रोडक्शन में बनी फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' में एक बार फिर इफ्तेखार को पुलिस इंस्पेक्टर बना दिया गया। इस फिल्म से इफ्तेखार ज्यादा मशहूर हो गए। 1963 में आई बिमल रॉय की फिल्म 'बंदिनी' में इफ्तेखार ने चुट्टी बाबू का रोल किया। इस रोल से वो इतना मशहूर हुए कि उनकी पिछली पहचान भी बदल चुकी थी। चुट्टी बाबू के रोल में इफ्तेखार की दमदार एक्टिंग के सभी कायल हो गए थे।
बॉम्बे आने के बाद 1950 और 60 के दशक में इफ्तेखार ने 70 से ज्यादा फिल्मों में काम किया, लेकिन न उन्हें कामयाबी मिली और न ही दर्शकों ने उन्हें पहचाना। लेकिन जब 1969 में बीआर चोपड़ा निर्मित और राजेश खन्ना अभिनीत ‘इत्तेफाक’ आई, जिसमें उन्होंने एक पुलिसवाले की भूमिका निभाई थी, तो उनकी तकदीर हमेशा के लिए बदल गई। इसके बाद वे फिल्मों में बतौर पुलिस वाले इस कदर व्यस्त हुए कि न सिर्फ जल्द ही बॉम्बे में अपना फ्लैट खरीद लिया, बल्कि 1970 और 80 का दशक इफ्तेखार के जीवन का स्वर्ण-काल साबित हुआ।
फिल्म "इत्तेफाक" (1970) में पुलिसवाले का किरदार निभाने से पहले इफ्तेखार 70 फिल्में कर चुके थे, लेकिन उन्हें इन फिल्मों से कोई पहचान हासिल नहीं हुई। मगर इफ्तेखार सिर्फ अभिनेता और गायक नहीं थे। वो एक पेंटर भी थे, जिससे खुद दादा मुनि यानी अशोक कुमार ने पेंटिग करना सीखा और उन्हें इस विधा में अपना ‘गुरु’ माना। इफ्तेखार कितने उम्दा चित्रकार थे, यह इस बात से भी पता चलता है कि ‘दूर गगन की छांव में’ नामक फिल्म की शुरुआत उनकी बनाई तस्वीरों से ही हुई थी।
1964 में आई बॉलीवुड की रोमांटिक फिल्म 'संगम' में इफ्तेखार पहली बार एयरफोर्स ऑफिसर बनकर सामने आए। पुलिस के बाद वायु सेना की वर्दी में भी इफ्तेखार जबरदस्त दिखे। फिल्म उस साल की सबसे बड़ी हिट साबित हुई थी। प्रकाश मेहरा की फिल्म "जंजीर" (1973) में इफ्तेखार अमिताभ के सीनियर पुलिस कमिश्नर सिंह के रोल में दिखे। इस फिल्म से जहां अमिताभ ने बॉलीवुड में अपनी एक खास जगह बनाई, वहीं इफ्तेखार अपने पिछले रोल से और भी बेहतर दिखे।
1978 में आई चंद्रा बरोत की 'डॉन' फिल्म में डीएसपी डिसिल्वा के रोल ने इफ्तेखार को सपोर्टिंग रोल का उस्ताद बना दिया था। इस फिल्म के लिए अमिताभ को जहां बेस्ट एक्टर का फिल्मफेयर अवार्ड मिला, वहीं इफ्तेखार का नॉमिनेशन बेस्ट सपोर्टिंग रोल के लिए हुआ था। 70-80 के दशक में अमिताभ जब सुपस्टार बन चुके थे, तब इफ्तेखार उनकी तमाम फिल्मों में देखे गए। डॉन की गिनती हिंदी सिनेमा के बेहतरीन फिल्मों में होती है और ये उस साल की सबसे बड़ी हिट में से एक थी। 4 मार्च 1995 में मुम्बई में उनका निधन हो गया।
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