हजारों करोड़ का खेल बजट, फिर भी ऐसी तस्वीर क्यों? ध्यानचंद के शिष्य को दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं, 82 साल की उम्र में अब तो मजदूरी करने की भी शक्ति नहीं
सागर, एमपी: ये भारतीय हॉकी के खिलाड़ी रह चुके टेकचंद की तस्वीर है।
साल 1961 में जिस भारतीय टीम ने हालैंड को हराकर हॉकी मैच में इतिहास रचा था, टेकचंद उस टीम के अहम खिलाड़ी थे। आज इनकी स्थिति बेहद दयनीय है। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के शिष्य और मोहर सिंह जैसे खिलाडियों के गुरू आज एक टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने को अभिशप्त हैं।
जनप्रतिनिधि से लेकर सरकार तक को इनकी कद्र करनी चाहिए थी, लेकिन आज दूर-दूर तक इनको पूछने वाला भी कोई नजर नहीं आता है। बता दें कि हॉकी देश का राष्ट्रीय खेल भी है। शायद इसीलिए सरकार 600 रूपये प्रतिमाह पेंशन देकर इनके ऊपर अहसान कर रही है।
भूखे पेट सोने को विवश अभागा
मध्यप्रदेश के सागर में रहने वाले टेकचंद के पत्नी व बच्चे नहीं हैं। भोजन के लिए अपने भाइयों के परिवार पर आश्रित इस अभागे को कभी-कभी भूखे भी सोना पड़ जाता है। ये उसी देश में रहते हैं, जहां एक बार विधायक- सांसद बन जाने के बाद कई पुश्तों के लिए खजाना और जीवन भर के लिए पेंशन-भत्ता खैरात में मिलता है।
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