"सिनेमा की बातें" सचमुच चना जोर गरम! जोश और देशप्रेम की सुनामी "क्रांति" की कहानी


नोरंजन

अगर अपनी सबसे पसंदीदा हिंदी फिल्मों की बात करूँ तो 'क्रांति" एक ऐसी फिल्म है, जिसे मैं जितनी बार भी देख लूँ मेरा मन नहीं भरता। 

"सिनेमा की बातें" सचमुच चना जोर गरम! जोश और देशप्रेम की सुनामी "क्रांति" की कहानी

उन्नीस सौ इक्यासी में आई इस फिल्म में सितारों का जमावड़ा था और एक -- एक सितारे की एक्टिंग जबरदस्त रही। वैसे तो इस फिल्म की कई खास बातें हैं, लेकिन इस फिल्म का नाम लेते ही जो सीन सबसे पहले याद आता है वो है, जहाज का वो सीन जिसमें शत्रुघ्न सिन्हा वो शेर पढ़ता है कि "अपनी लाशों से हम तारीख को आबाद रखें,
वो लड़ाई हो कि अंग्रेज याद रखें"।  और दूसरा याद आता है वो गाना।

वो गाना, जो लिखा था संतोष आनंद ने और जिसका संगीत दिया था लक्ष्मी कांत प्यारेलाल ने। इस गाने को अपनी आवाज देने वालों में थे किशोर दा, रफी साहब, लता दीदी और नितिन मुकेश। 

जब भी फिल्म संगीत की बात आती है तो निर्विवाद रूप से पंचम दा का नाम सबसे पहले आता है, लेकिन मुझे लगता है कि संगीत की जो समझ लक्ष्मीकांत प्यारेलाल साहब को थी, वो शायद किसी और को नहीं थी। वैसे तो 'कर्ज' फिल्म के सारे ही गाने बहुत शानदार हैं, लेकिन जब मैं "एक हसीना थी, एक दीवाना था... " गाना सुनता हूँ तो उस गाने की क्वालिटी और संगीत सुनकर लगता है कि वो अपने समय से कम से कम पंद्रह साल आगे का गाना है। 

खैर, बात क्रांति फिल्म के उस गाने की जो मुझे बहुत पसंद है। तो गाने की सिचुएशन ये है कि जूनियर और सीनियर क्रांति, मतलब मनोज साहब और दिलीप साहब, दोनो को पकड़ लिया गया है और शत्रुघ्न सिन्हा और हेमा मालिनी अपने साथियों के साथ उन्हें बचाने जाते हैं। गाना शुरू होता है--

चना जोर गरम बाबू मैं लाया मजेदार
चना जोर गरम। 
मेरा चना बड़ा है आला
इसमें डाला गरम मसाला
इसको खाएगा दिलवाला
चना जोर गरम।

इस गाने के ये बोल फिल्म देखने वाले गाँव- देहात, कस्बों और शहरों के उस तबके को रिलेट करते हैं, जिसके लिए चने का मतलब "रोस्टेड ग्राम" नहीं बल्कि "चना जोर गरम" ही होता है। 
गाने का फिल्मांकन ऐसा है कि अंग्रेजों की छावनी है और मनोज और दिलीप कुमार को गले में फंदा डालकर  पत्थर पर बैलेंस किए गए तख्तों पर खडा किया गया है। जरा सा बैलेंस बिगड़ा और फांसी लगी। 

गाने का हर एक बोल ऐसा है कि मन को छूता है। जब मनोज कुमार की आवाज बने नितिन मुकेश गाते हैं कि--- 
मेरा चना खा गए गोरे
जो गिनती में हैं थोड़े
फिर भी मारे हमको कोड़े
फिर भी मारे हमको कोड़े
तो अपने पुरखों की बेबसी पर आँसू आ जाते हैं कि वाकई कैसे गिनती में थोड़े गोरों ने हमारे देश को अपने चंगुल में कर लिया था। 

लेकिन इसके बाद जब ये पंक्ति आती है कि--

लाखों कोड़े टूटे फिर भी टूटा ना दम खम
चना जोर गरम।
तो उनके संघर्ष को ह्रदय नमन कर उठता है। 
लेकिन गाने में असली जोश तब आता है जब दिलीप कुमार की आवाज बने रफी साहब गाना शुरू करते हैं और
उनका साथ नितिन मुकेश देते हुए कहते हैं--
मेरा चना है अपनी मर्जी का
मर्जी का भाई मर्जी का
ये दुश्मन है खुदगर्जी का
खुदगर्जी का खुदगर्जी का
सर कफन बांध के निकला है
दीवाना है ये पगला है।
और इसे गाते समय दोनों का अभिनय और नृत्य देखिए, उसी तख्ते को सिंक में एक साथ एक विशेष तरीके से मूव करना, देखकर रोम कूप खड़े हो जाते हैं, मतलब गूजबम्प्स हो जाते हैं। 
और फिर जब ये पंक्तियाँ आती है कि--
अपनी धरती अपना है गगन
ये मेरा है मेरा है वतन
इसपर जो आँख उठाएगा
जिंदा दफनाया जाएगा
चना है अपनी मर्जी का
मर्जी का भाई मर्जी का
ये दुश्मन है खुदगर्जी का
खुदगर्जी का खुदगर्जी का।
तो अचानक ही हार्ट बीट एक सौ बीस को क्रॉस कर जाती है और लगता है कि देश के सभी दुश्मनों को ये बात चिल्ला - चिल्ला कर बता दें कि "आल्वेज कीप दिस इन यौर माइंड"।
 

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