विश्व आर्द्रभूमि दिवस के उपलक्ष्य में विभिन्न विद्यालयों द्वारा निकाली गई प्रभात फेरी : आर्द्र भूमि की महत्ता बनाए रखने को लेकर चलाया गया जागरूकता अभियान


साहिबगंज : विश्व आद्रभूमि दिवस के अवसर पर आज जिले के गांधी चौक से एसडीओ कोठी के समीप स्थित तालाब तक आद्र भूमि की महत्ता के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से विभिन्न विद्यालयों द्वारा प्रभातफेरी का आयोजन किया गया। 

विश्व आर्द्रभूमि दिवस के उपलक्ष्य में विभिन्न विद्यालयों द्वारा निकाली गई प्रभात फेरी : आर्द्र भूमि की महत्ता बनाए रखने को लेकर चलाया गया जागरूकता अभियान


इस क्रम में कन्या उच्च विद्यालय, राजस्थान मध्य विद्यालय एवं अन्य विद्यालयों के छात्र - छात्राओं द्वारा जनसाधारण को जागरूक करते हुए आद्र भूमि को संरक्षित करने के संबंध में नारे लगाए गए। वन प्रमंडल पदाधिकारी मनीष तिवारी, उप विकास आयुक्त प्रभात कुमार बरदियार, नगर परिषद के अध्यक्ष श्रीनिवास यादव, जिला खेल पदाधिकारी अमित कुमार, जिला गंगा समिति के सदस्य भी इस प्रभात फ़ेरी में सम्मिलित हुए।

एसडीओ कोठी के समीप स्थित तालाब पर यह प्रभात फेरी समाप्त हुई एवं यहां कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। कार्यक्रम में सभी को संबोधित करते हुए वन प्रमंडल पदाधिकारी मनीष तिवारी ने बताया कि हम सभी को मिलकर प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने की दिशा में कार्य करना चाहिए। 

अगर हम सभी अपने - अपने स्तर से प्रयास करें एवं प्राकृतिक जल स्रोतों में प्लास्टिक एवं अन्य कूड़ा कचरा ना फैलाएं, अगर हमारा घर इन स्त्रोतों के समीप है, तो इस पर कोई निर्माण ना करें और अपने स्तर से अगर वृक्षारोपण करें तो निश्चित रूप से हम आद्र भूमि को बनाए रखने एवं प्राकृतिक जल स्रोतों के स्वभाव को सुरक्षित रखने में कामयाब होंगे। उन्होंने कहा कि इतिहास अगर देखें तो हर सभ्यता व संस्कृति जल स्रोतों या नदियों के किनारे ही बसी है। 

अगर यह स्रोत और नदियां गुजर जाएंगे तो सभ्यता का भी विनाश होगा। इससे सीख लेते हुए हम सभी को अपने जल स्रोतों के प्रति और सजग रहने की आवश्यकता है। वन प्रमंडल पदाधिकारी ने कहा कि आर्द्रभूमि दिवस मनाने का उद्देश्य यह है कि जलीय जंतु, जैसे मछली पंछियों में हंस, बतख, किंगफिशर एवं अन्य जलीय सरीसृप को सुरक्षा एवं भोजन मिलता रहे। इसके अलावा, बीवर, ऊदबिलाव और यहां तक कि बाघ जैसे स्तनधारी भोजन और आश्रय के लिए दलदली भूमि पर ही निर्भर करते हैं।

साथ ही उन्होंने कहा कि आज आर्द्रभूमि, कारखानों, कीटनाशकों और उर्वरकों से प्रदूषण के खतरों का सामना कर रहे हैं। यदि आर्द्रभूमि गायब हो जाती है, तो शहरों को बाढ़ से बचाव के लिए अधिक पैसा खर्च करना होगा, जानवर विस्थापित हो जाएंगे या मर जाएंगे, लुप्तप्राय प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी और खाद्य आपूर्ति रुक जाएगी। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर हम एक ऐसे पर्यावरण का निर्माण करें और ऐसे समाज की स्थापना करें, जो रिन्यूएबल एनर्जी और ऐसे ही ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा दें, ताकि हम अपने आने वाली नस्लों को साफ पानी, स्वच्छ नदियां और अनुकूल पर्यावरण सौंप सकें।

कार्यक्रम के दौरान उप विकास आयुक्त प्रभात कुमार बरदियार ने सभी को संबोधित करते हुए कहा कि सर्वप्रथम साल 1997 को 02 फरवरी के दिन विश्व आर्द्रभूमि दिवस मनाया गया था। जिसका उद्देश्य है कि दलदल, नदियाँ, मैंग्रोव, बोगियां, तालाब, मिट्टी के फ्लैट, बिल्लाबोंग, दलदल, बाढ़ के मैदान और झील का संरक्षण हो, पानी में बसने वाले जलीय जीव सुरक्षित रहें और हमारे पर्यावरण का संतुलन बना रहे, साथ ही इन जलीय जीवों से नदी, पर्यावरण, वन और भूमि पर प्रतिकूल असर पड़ता रहे। 

उन्होंने कहा कि हम सभी को मिलकर यह सामूहिक प्रयास करना होगा कि हम अपने प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाएं एवं ऐसे आद्र भूमि, जहां कभी झरने बहा करते थे, उनको दोबारा जिंदा करने में हम अपनी सहभागिता दें। इसके अलावा उन्होंने कहा कि हम सभी यह ठान लें की प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेंगे, तो हमारे शहर से प्लास्टिक से होने वाला कूड़ा - कचरा भी कम हो जाएगा।

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