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ऋतु आई है बसंत, प्रकृति हुई जीवंत : प्रोफेसर सुबोध झा की स्वरचित रचना


वसंत ऋतु के आगमन के साथ ही जब मंद–मंद बहती हवाओं की ठंडी–ठंडी फुहार चलती है, तब प्रेमी हृदय में प्रेम का प्रवाह बढ़ जाता है। फिर ऐसे में कवि हृदय कहाँ पीछे रह पाता है।

ऋतु आई है बसंत, प्रकृति हुई जीवंत : प्रोफेसर सुबोध झा की स्वरचित रचना

    श्रृंगाररस से सराबोर लेखनी जागृत होती है और प्रेमातुर होकर मनहर घनाक्षरी छंद की रचना कर जाती है, जो प्रेमगीत बन जाता है।


ऋतु आयी है वसंत, प्रकृति हुई जीवंत;

खुशियां मिली अनंत, मन को लुभाते हैं।


वसंत की है बहार,भोर ओस की फुहार;

मंद-मंद  सी  बयार, कवि  मन  गाते  हैं।


प्रेमियों का बढ़े प्यार, करे सब इजहार;

लाड़-प्यार व दुलार, कुछ बढ़ जाते हैं।


कवि मन करे रार, छलकत संग प्यार;

कहत सुबोध सार, प्रेमगीत   गाते   हैं।


सुबोध झा

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