आजाद हिन्द फौज की भूमिका: भाग-8
अबतक आपने पढ़ा कि गांधीजी अहिंसात्मक आंदोलन द्वारा आजादी प्राप्त करने में जुटे थे, परंतु सुभाष चन्द्र बोस की विचारधारा बिल्कुल ही भिन्न थी। यही कारण था कि गांधीजी और सुभाष बाबू में मतिभिन्नता थी, जो जगजाहिर भी था।
जब सुभाष बाबू दुबारा कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए तो गांधीजी को यह नागवार लगा और अंतत: सुभाषजी को कांग्रेस छोड़नी पड़ी। दरअसल 1938 में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद एमपी के जबलपुर में दूसरी बार वर्ष 1939 में भी कांग्रेस का 52वां अधिवेशन हुआ,
जिसमें सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी के प्रतिनिधि पट्टाभि सीतारमैया को हराकर एक बार फिर से कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। लेकिन नेताजी की इस जीत के बाद महात्मा गांधी काफी दुखी थे। यहाँ तक कि उन्होंने पट्टाभि सीतारमैया की हार को सामुहिक रूप से अपनी हार भी बता दिया।
महात्मा गांधी को आहत देख सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। माना जाता है कि सुभाष बाबू की जीत के बाद भी कांग्रेस में हालात ऐसे बने थे कि नेता जी अपनी कार्यसमिति तक नहीं बना पाए थे। इसके बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और इसी साल नेताजी ने अपनी पार्टी ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया।
इसके बाद सुभाष बाबू ने क्रांतिकारी रास बिहारी बोस (1915) तथा मोहन सिंह (1942) द्वारा संस्थापित आजाद हिंद फौज को 21 इकतूबर 1943 में सिंगापुर से नेतृत्व किया और आजाद हिंद सरकार नाम से भारत में पहली स्वतंत्र अंतरिम सरकार की घोषणा कर दी, जिसे जर्मनी,जापान,इटली सहित सात देशों ने मान्यता दी। अब आगे-
आजाद हिंद फौज की भूमिका
23 मार्च 1930 का वो दिन आया था;
जो भारत में विवादित कहलाया था;
भगतसिंह,राजगुरु,सुखदेव तीनों को;
बिना ट्रायल फांसी पर लटकाया था।
मैं क्या जानूं,लोग तो बस यही कहते हैं;
लार्ड इरविन की ही कही बात करते हैं।
गांधी चाहते तो फांसी रूक सकती थी;
टलकर काला पानी में बदल सकती थी।
गांधी, सुभाष की आजादी के प्रति;
अलग-अलग सोच व संस्कृति थी।
गर गांधी अहिंसा की सोच रहे थे;
सुभाष के दिल में धधकती क्रांति थी।
संग्राम में एक ऐसा दौर भी आया था;
बोस ने आजाद हिन्द फौज बुलाया था;
द्वितीय विश्वयुद्ध में जापानी सहयोग से;
शक्तिशाली ब्रिटिश को धूल चटाया था।
1943 में अंडमान निकोबार द्वीप को;
क्रूर ब्रिटिश शासन से मुक्त कराया था;
सुभाषचन्द्र ने स्वतंत्र सरकार बनाकर;
प्रथमत: भारत का तिरंगा फहराया था।
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा
जान रहे या जाए अंग्रेजों की बर्बादी दूँगा
दिल्ली चलो नारा से भारतीयों को,
आजाद हिन्द फौज में आमंत्रित किया;
फिर उसी फौज को सुभाषचन्द्र बोस ने,
स्वातंत्र्य संग्राम हेतु व्यवस्थित किया।
द्वितीय विश्व युद्ध 1945 में,
जापानी सेना की हार हुई;
मजबूर हुए सुभाष चन्द्र बोस,
किस्मत भी तो उनकी रूठ गई।
नेताजी को सुरक्षित पहुँचाने,
बस एक जापानी जहाज गया,
अब दुर्घटना हुई या क्या हुआ,
बस अंत तक रहस्य ही रहा।
सुबोध झा
क्रमश: __
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