दांडी मार्च, गोलमेज सम्मेलन: भाग - 7


दांडी मार्च, गोलमेज सम्मेलन: भाग - 7

अबतक आपने पढ़ा कि साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय लाठी खाकर शहीद हो गए, जिसका बदला क्रांतिकारियों ने जिम्मेदार अंग्रेज़ आफिसर सांडर्स की हत्या करके ली। यहाँ बीच में इस बात की चर्चा करनी जरूरी है कि खिलाफत आंदोलन, जो भारतीय मुसलमानों ने 1919 से 1924 तक चलाया, वास्तव में भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम का हिस्सा नहीं है। 

क्योंकि यह विरोध तुर्की में खलीफा की पुनर्बहाली और ब्रिटेन की विरोधी नीति का खिलाफत करने के लिए था। महात्मा गांधी ने इस आन्दोलन को भी असहयोग आन्दोलन के समकक्ष चलाने में भरपूर मदद की, जिसकी आज भी कुछ लोगों के लिए महात्मा गाँधी निंदा के पात्र हैं। उन्हें लगा कि खिलाफत को समर्थन देने से मुस्लिमों को उनके साथ असहयोग आंदोलन में जोड़ देगा। अब आगे-


दांडी मार्च, गोलमेज सम्मेलन

सम्पूर्ण इस्लामिक देशों का खलीफा;

माना गया, सिर्फ तुर्की का सुल्तान;


1924 तक ब्रिटिश तुर्की विरोध का;

खिलाफत किया भारतीय मुसलमान।


जून 1928, सरदार पटेल के नेतृत्व में;

देश में जन जागरण आया अस्तित्व में।


बारदोली किसान आंदोलन से जागृति आई;

जिसने किसानों की दशा में कुछ प्रगति लाई।


8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह ने,

बस बटुकेश्वर दत्त को साथ लिया;


प्रथमत: इन्कलाब जिंदाबाद कह,

एसेम्बली हाॅल में बम चला दिया।


समर्थ थे दोनों बच निकलने को,

पर उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं किया;


अंग्रेजों को क्रांति का संदेश देने को,

भागना छोड़ खुद को पकड़ा दिया।


सन् 1929 में फिर महात्मा गांधी ने;

अवज्ञा आन्दोलन का आह्वान किया;


अब सम्पूर्ण ब्रिटिश सरकारी नीति का; 

पूर्णतः विरोध करने का संज्ञान लिया।


26 जनवरी 1930 का दिन आएगा;

भारत स्वतंत्रता दिवस मनाएगा;


सम्पूर्ण देश में हर एक संस्थानों पर; 

भारत का झंडा फहराया जाएगा।

 

गाँधी,नेहरू समेत हजारों लोगों को;

जेल की सलाखों में अत्याचार किया;


अंग्रेजों ने अपने निरंकुश शासन से;

भारतीय संग बुरा व्यवहार किया।


12 मार्च 1930 को गाँधी ने, 

दांडी मार्च की यात्रा की;


फिर मिलकर हर भारतीय ने,

स्वतंत्रता की प्रतिज्ञा ली।


साबरमती आश्रम से महात्मा ने,

साथ साथ मीलों पैदल मार्च किया;


सिर्फ विरोध के लिए नमक बनाकर,

ब्रिटिश कानून को चोट दिया।


प्रथम गोलमेज सम्मेलन 1930 का;

कांग्रेस ने पुर्णत: बहिष्कार  किया।


द्वितीय सम्मेलन 7 सितंबर 1931 में;

सवज्ञा आन्दोलन से प्रहार किया।


अब होने लगा हुकूमत से आर-पार;

बढ़ने लगा क्रूर अंग्रेजों का अत्याचार;


1932 तृतीय गोलमेज सम्मेलन का;

पुन: कांग्रेस ने  कर  दिया बहिष्कार।



सुबोध झा

क्रमश:___

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