खुदीराम बोस की शहादत दिवस पर प्रोफेसर सुबोध झा की कलम से निकली कविता
खुदीराम बोस की शहादत दिवस पर प्रोफेसर सुबोध झा की कलम से निकली कविता
मुज़फ्फरपुर बिहार में जज किंग्सफोर्ड पर बम फेंकने के जुर्म में 11अगस्त 1908 को फांसी की सजा पाकर सबसे कम उम्र, महज 18 वर्ष 8 माह में शहीद होने वाले महान क्रांतिवीर खुदीराम बोस की शहादत दिवस पर उन्हें शत – शत, नमन – वंदन
धन्य - धन्य हुआ अपना बंगाल;
पाकर एक क्रांतिवीर लाल;
खुदीराम बोस उनका नाम;
उम्र महज अठारह साल।
उम्र से कच्चे बस बच्चे अनजाने;
पर आजादी के वे सच्चे दिवाने;
शमा बनी जब क्रांति की ज्वाला;
बस जल गए खुदी, बन परवाने।
अंग्रेज़ बढ़ते गए, भारतीय थे मदहोश;
उन्हें जगाने खुदी को यूं आया जोश;
फेंककर बम क्रूर जज किंग्सफोर्ड पर;
फांसी पर झूल गए खुदीराम बोस।
भारत भूमि उसे जान से प्यारी;
जल रही आजादी की चिंगारी;
हँसकर लगाया फाँसी का फंदा;
सारा वतन रहेगा तेरा आभारी।
सहृदय श्रद्धांजलि
सुबोध
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